(डिजाइन फोटो)
देश में युवाओं की तादाद देखते हुए नौकरियां बेहद कम हैं, ऊपर से नौकरी देने में भ्रष्टाचार भी होता है। राजस्थान में गिरफ्तार किए गए राज्य लोकसेवा आयोग के एक पूर्व सदस्य पर आरोप है कि उन्होंने अपने बेटे और बेटी को उपनिरीक्षक पद की परीक्षा के लिए 2021 में पेपर लीक किए थे। इन दोनों ने टेस्ट में टॉप किया था। सरकारी व प्राइवेट सेक्टर में भी रोजगार के अवसर घटते जा रहे हैं। हजारों अर्धकुशल युवाओं को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आता है।
देश का 65 प्रतिशत कार्यबल 35 वर्ष से कम आयु का है। इनमें से केवल 2 प्रतिशत युवा कुशल हैं। कॉलेज शिक्षा पूर्ण करने के बाद सीधे रोजगार पाने में बहुत कम को सफलता मिलती है। अब कंपनियां बड़ी तनख्वाह के ऑफर भी नहीं दे रही हैं। मैकिंसे रिपोर्ट के अनुसार देश में 9 करोड़ नए ब्लू कॉलर जॉब 2030 तक उपलब्ध होंगे जो ज्यादातर लॉजिस्टिक्स, वेयर हाउसिंग और गिग इकोनॉमी में होंगे। गिग इकोनॉमी से मतलब है- घरों में सामान की डिलीवरी देने का काम! नौकरी की मात्रा या गुणवत्ता बढ़ने के कोई आसार नहीं हैं। इसे लेकर कोई नीति भी नहीं है।
यह भी पढ़ें:- हेलीकॉप्टर हादसे में मारे गए आंध्र प्रदेश के CM वाईएसआर रेड्डी का मिला शव, जानें 03 सितंबर का इतिहास
नौकरी-रोजगार पैदा करना अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। यह किसी पर अहसान नहीं है। योग्य लोगों को नौकरी न मिल पाना बहुत बड़ी त्रासदी है। पिछले 15 वर्षों में नौकरी-रोजगार की समस्या काफी गंभीर हो गई है। पेपर लीक जैसा भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है। हालत यह है कि उत्तरप्रदेश पुलिस में भर्ती के लिए 5वीं पास युवाओं की जरूरत थी लेकिन चपरासी के पद के लिए 3,700 पीएचडी धारकों ने आवेदन दिया। पिछले 20 वर्षों में कोचिंग उद्योग काफी फल-फूल गया है। अनुमानित तौर पर देश का कोचिंग व्यवसाय 58,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है जो कि सारे आईआईटी और एम्स के कुल बजट से भी 3 गुना है। गत वर्ष 11 लाख एमबीबीएस सीट के लिए 24 लाख छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा थी।
यूजीसी-नेट की 4,000 फेलोशिप के लिए 11 लाख छात्रों ने खुद को पंजीबद्ध कराया था। स्नातक पाठ्यक्रम में एक वर्ष जोड़ कर उसे 4 वर्ष का कर दिया गया है। इससे कॉलेजों पर भार बढ़ेगा। इसके लिए कालेजों को अतिरिक्त अनुदान नहीं दिया जाएगा। रोजगार के मामले में मांग और पूर्ति के बीच काफी बड़ा अंतर है। पढ़े लिखे युवा को जब खर्चीली शिक्षा व कोचिंग के बावजूद नौकरी नहीं मिलती तो उसकी और परिवार की उम्मीदें टूट जाती हैं। शिक्षा में विषय की समझ और मौलिक सोच की बजाय रट्टमपट्टी बढ़ रही है। ऐसे युवा कैसे रचनात्मक योगदान देंगे?
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा