महाराष्ट्र की राजनीति (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र की राजनीति में व्याप्त द्वेष और कटुता के बीच अचानक सौहार्द्रपूर्ण संस्कृति की बयार महसूस की गई जब शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने राजनीति वैरभाव को परे रखते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के 55वें जन्मदिन पर उनकी कार्यकुशलता की भूरि-भूरि प्रशंसा की।शरद पवार जैसे दिग्गज नेता ने कहा कि फडणवीस प्रतिदिन 18-19 घंटे काम करते हैं और इतनी मेहनत के बाद भी थकते नहीं हैं।वह एक दूरदर्शी नेता हैं जो राज्य के भविष्य के लिए हमेशा सोचते हैं।पवार ने कहा कि मुझे फडणवीस की कार्यशैली में अपनी छवि नजर आती है।वे 2 विपरीत विचारधारों के नेताओं के साथ भी काम कर सकते हैं।इसी तरह उद्धव ठाकरे ने भी फडणवीस की तारीफ करते हुए कहा कि वह ऐसे नेता हैं जो बड़े मौके के हकदार हैं।
महाविकास आघाड़ी के 2 नेताओं द्वारा मुख्यमंत्री फडणवीस की कार्यशैली की खुले मन से सराहना यह दर्शाती है कि राजनीति में अब भी कहीं न कहीं सकारात्मकता का पहलू कायम है।वास्तव में ऐसा ही होना चाहिए।वैचारिक या सैद्धांतिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन संबंधों में कटुता नहीं आनी चाहिए।महाराष्ट्र की राजनीति का ऊंचा स्तर भी लोगों ने देखा है जब बालासाहेब भारदे या शेषराव वानखेड़े जैसे स्पीकर या सभापति हुआ करते थे।सदन में ज्वलंत मुद्दों पर अभ्यासपूर्ण चर्चा हुआ करती थी।नेताओं में आत्मीयतापूर्ण संबंध रहा करते थे।अब राजनीतिक शत्रुता ही नहीं परस्पर संदेह का वातावरण भी बन गया है।हाल ही में विधान भवन में मारपीट की अशोभनीय घटना भी देखी गई।आलोचना की भाषा दूषित व अपमानजनक होती जा रही है।खास तौर पर 2014 के बाद से राजनीति के स्तर में गिरावट आई है।
उस वर्ष 4 प्रमुख पार्टियों ने स्वतंत्र रूप से विधानसभा चुनाव लड़ा था जिसमें किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल पाया था।कुल 288 सीटों में से बीजेपी ने सर्वाधिक 122 सीटें जीती थीं।बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता मिला था।तब शरद पवार ने सरकार को बाहर से समर्थन देने की घोषणा की थी।बाद में बीजेपी के खिलाफ चुनाव लड़नेवाली शिवसेना बीजेपी के साथ सत्ता में शामिल हुई किंतु सत्ता में रहते हुए भी शिवसेना के नेता बीजेपी व प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना करते देखे गए।तब शिवसेना के मंत्री कहते थे कि हम अपने इस्तीफे हमेशा अपनी जेब में तैयार रखते हैं।शिवसेना का मुखपत्र भी केंद्र सरकार की आलोचना करता रहता था।
खुद के हिंदुत्व को असली बताने की होड़ लगी थी।2019 के चुनाव में शिवसेना ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जबकि देवेंद्र फडणवीस को भरोसा था कि वह बीजेपी को अपने दम पर निर्वाचित करवा सकते हैं लेकिन केंद्रीय निर्देश या दबाव की वजह से शिवसेना के साथ सीटों का बंटवारा करना पड़ा।बाद में महाविकास आघाड़ी का प्रयोग कर बीजेपी को अंगूठा दिखा दिया गया।फडणवीस बार-बार कहते थे कि मैं फिर वापस आऊंगा और उन्होंने पुन: सत्ता में आकर दिखा दिया।बाद में फडणवीस ने चाणक्य नीति पर चलते हुए शिवसेना और राकां दोनों को तोड़ कर हिसाब बराबर कर दिया।अब यदि शरद पवार ने फडणवीस के राजनीतिक कौशल की सराहना की है तो इसके पीछे कोई वजह जरूर होगी।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा