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नवभारत डेस्क: जिन नेताओं का भारत की एकता अखंडता में विश्वास नहीं है और जिन्हें राष्ट्रीयता की विचारधारा से लेना-देना नहीं है, वे ही नकारात्मक तरीके से सोचते हैं। कांग्रेस नेता व पूर्व विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद का यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो बांग्लादेश में हो रहा है, वह भारत में भी हो सकता है। भारत की उसके पड़ोसी देशों से कोई तुलना नहीं की जा सकती जहां हमेशा से अस्थिरता व्याप्त रही है।
पाकिस्तान में लोकतंत्र कभी जड़े नहीं जमा पाया। वहां फौज या फिर उसके दबाववाली कठपुतली सरकार सत्ता में रही। वहां अयूब खान, याह्या खान, जिया उल हक और मुशर्रफ जैसे सैनिक तानाशाहों ने हुकूमत की। म्यांमार में लोकतंत्र को कुचल कर सैनिक जुटा राज कर रहा है। श्रीलंका और मालदीव जैसे छोटे देशों में भी अस्थिरता व्याप्त रही। नेपाल में कुछ ही वर्षों में अनेक बार सरकार बदली। बांग्लादेश में जो हुआ, सबके सामने है। भारत की विशेषता अनेकता में एकता की रही है। इतनी भाषा, संस्कृति की विविधता के बाद भी भारतीयता की भावना देशवासियों के हृदय की गहराइयों में है।
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इतिहास गवाह है कि जब भी विदेशी आक्रमण हुआ, समूचे राष्ट्र ने गजब की एकजुटता दिखाई, भारत में नियमित रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए जाते रहे तथा लोकतंत्र के तीनों अंगों संसद, न्यायपालिका और कार्यपालिका का संतुलन हमेशा बना रहा। हमारे देश की जनता चुनावों के माध्यम से अपना लोकप्रिय जनादेश देती आई है। सेना का राजनीति में जरा भी दखल नहीं है। आजादी के 77 वर्षों में भारत के संसदीय लोकतंत्र ने अपनी मजबूती दिखाई है और आबादी के लिहाज से यह विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इसकी सुदृढ़ता संविधान में वर्णित नियंत्रण और संतुलन के सिद्धांत की बुनियाद पर है।
केंद्र और राज्यों के अधिकार अलग-अलग परिभाषित हैं। एक समवर्ती सूची भी है जिसके अंतर्गत केंद्र और राज्य दोनों कानून बना सकते हैं। बांग्लादेश में निरंतर अस्थिरता देखी गई और कई बार तख्तापलट होता रहा। शेख हसीना ने आर्थिक विकास और एक्सपोर्ट में वृद्धि पर ध्यान दिया, देश की इकोनॉमी सुधारी लेकिन विपक्षी पार्टियों को चुनाव लड़ने नहीं दिया। अपने विपक्षियों को जेल में रखा। बीएनपी नेता खालिदा जिया 6 वर्षों
से कैद में थीं।
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा