(डिजाइन फोटो)
श्रीलंका को दिवालियेपन पर ला देने वाले आर्थिक संकट के बाद उभरे जन विद्रोह के बाद 21 सितंबर को पहला राष्ट्रपति चुनाव होने जा रहा है। यह चुनाव सुनिश्चित करेगा कि एक जनाभिमुख सरकार आयेगी और उसका मुखिया देश को एकजुट रख आर्थिक सामाजिक ढांचे को मजबूत कर उसे विदेशी हस्तक्षेप से बचाएगा। चूंकि चीन इसमें बहुत रुचि ले रहा है, इसलिए हमारी रुचि भी इन चुनावों और उसके परिणामों में बनी हुई है कि कोई चीन परस्त राष्ट्रपति आकर हमारे पूर्व प्रयासों को बेकार न कर दे।
श्रीलंका की वामपंथी पार्टी जेवीपी के नेता साजित प्रेमदासा ने कहा कि वे जीते तो श्रीलंका के उत्तर पूर्वी इलाकों मन्नार और पूरिन में अडानी समूह की 44 करोड़ डॉलर की पवन ऊर्जा परियोजना को रद्द कर देंगे। इससे श्रीलंकाई चुनावों में शामिल एक प्रमुख पार्टी की भारत विरोधी मंशा जाहिर होती है। ऐसे में हमें चीन के बढ़ते निवेश, प्रभाव पर नजदीकी नजर रखनी होगी।
विदेशमंत्री एस जयशंकर जून में अपने श्रीलंका दौरे के दौरान राष्ट्रपति विक्रमसिंघे और प्रधानमंत्री महामहिम दिनेश गुणवर्धने के अलावा विभिन्न पार्टियों के नेताओं महिंदा राजपक्षे साजित प्रेमदासा से अलग-अलग मिले थे और बताया था कि श्रीलंका की सत्ता किसी के भी हाथ हो, भारत की सहायता पहले की तरह जारी रहेगी।
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मगर जेवीपी के रुख से साफ है कि श्रीलंका चुनाव में एक पक्ष ऐसा भी है जो मोदी की पड़ोसी पहले की नीति पर विश्वास नहीं कर रहा। उसे भारत के दीर्घकालिक आर्थिक सहयोग से ज्यादा चीन की चाकरी पसंद है। यदि चीन जैसे देश को अवसर मिला तो श्रीलंका खुद तो तबाह होगा ही पड़ोस में चीन के प्रत्यक्ष प्रवेश से भारत के हित भी असुरक्षित हो जाएंगे।
ऐसे में श्रीलंका को उदार आर्थिक सहायता देने वाले और विभिन्न मौकों पर उसके संकट मोचक साबित हो चुके भारत समर्थक दल के प्रतिनिधि को चुनना होगा। लेकिन यह तभी होगा, जब श्रीलंका के मतदाता ऐसा राष्ट्रपति चुनें जो चीनी दबाव से मुक्त और भारत समर्थक हो, उसे पड़ोसी पहले की भारतीय विदेश नीति पर पूरा भरोसा हो! कर्ज के बोझ में दबी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था के चलते नया राष्ट्रपति कोई भी बने उस पर ऋणदाताओं और दानदाताओं का दबाव बना रहेगा।
अनुरा एनपीपी गठबंधन के मुख्य घटक जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) से मार्क्सवादी-लेनिनवादी नेता हैं। ये दोनों नेता मूलत: भारत समर्थक नहीं समझे जाते। तीसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार रानिल विक्रमसिंघे हैं, पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की श्रीलंका पोडुजना पेरमुना के तमाम विधायकों का समर्थन उन्हें प्राप्त है।
माना जा रहा है कि यह चुनाव राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे के दो साल के शासन पर जनमत संग्रह है, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को नाजुक स्थिति से बाहर निकाला। चौथे स्थान पर परंतु चौका देने वाले नतीजे दे सकने वाले उम्मीदवार राजपक्षे वंश से, महिंद्रा राजपक्षे के बेटे नमिल राजपक्षे हैं।
ग्रामीण इलाकों में, युवा और आमजन भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के लिए अनुरा को समर्थन दे रही है तो शहरी अभिजात वर्ग रानिल को, साजित किसानों, शिक्षकों, डॉक्टरों और तमिल मुस्लिम को पसंद है। नमल युवा शक्ति को पसंद हैं।
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श्रीलंकाई मतदाता आखिरी दौर तक भ्रमित नजर आ रहे हैं, वे किसे राष्ट्रपति चुनते हैं यह उनका चयन है पर भारत को इस मामले में कोई भ्रम नहीं कि श्रीलंका में जरा सी चूक पडोस में चीनी संकट बढ़ा सकता है, इसलिये श्रीलंका में चीनी प्रभाव को सीमित करने के उपक्रमों के साथ अन्य कूटनीतिक प्रयासों में तेजी लानी होगी।
श्रीलंका चीनी कर्जे के बोझ से न दबे इसलिए भारत ने वहां आईएमएफ के दिए बेल आउट से एक अरब डॉलर ज्यादा कुल चार अरब डॉलर का निवेश किया, सात करोड़ डॉलर के पेट्रोलियम की आपूर्ति के वादे के साथ दोतरफ़ा पेट्रोलियम पाइपलाइन, कोलंबो, त्रिंकोमाली बंदरगाहों, जाफना और हंबनटोटा हवाई अड्डों पर निवेश किया।
पिछले साल राष्ट्रपति विक्रमसिंघे भारत आये थे तब प्रधानमंत्री मोदी ने पड़ोसी पहले नीति के श्रीलंका के साथ समुद्री, वायु ऊर्जा, पर्यटन, बिजली, व्यापार और शिक्षा क्षेत्रों को मजबूत करने वाले कई समझौते किए। कोरोना के दौरान भारत ने श्रीलंका को 5 लाख टीके और 150 टन, ऑक्सीजन भेजी थी।
लेख- संजय श्रीवास्तव द्वारा