प्रतीकात्मक तस्वीर ( सोर्स: सोशल मीडिया )
Navbharat Digital Desk: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे से पता चलता है कि उनकी कितनी लोकप्रियता है। सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बांड योजना को रद्द कर दिया लेकिन इससे बीजेपी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
उसकी तिजोरी लबालब है। 2024-25 में बीजेपी को 6,088 करोड़ रुपये का चंदा मिला। खास बात यह है कि बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में 12 गुना चंदा हासिल हुआ।’ हमने कहा, ‘चुनाव लड़ने वाला हर बंदा चंदा चाहता है।
जिस पार्टी का प्रभाव मंदा हो गया उसे बहुत कम चंदा मिल पाता है। इस मामले में कम्युनिस्टों का बेहाल है। बीजेपी के शीर्ष 30 दानदाताओं में देश की कई कंपनियां शामिल हैं।
चंदा देने वाले अपने लिए फेवरेबल नीतियां चाहते हैं। यह गिव एंड टेक का खेल है। इस हाथ दे, उस हाथ ले ! बीजेपी को हाथ फैलाकर चंदा मांगना नहीं पड़ता। वह खुद ही उसकी झोली में आ टपकता है।
कहते हैं- मांगे बिन मोती मिले, मांगे मिले न भीख !’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, चंदा कहां नहीं है! चंदा शब्द पर कितने ही फिल्मी गीतों की रचना हुई है। सुनील दत्त- मधुबाला की फिल्म ‘इंसान जाग उठा’ का गीत था- ये चंदा रूस का, ना ये जापान का, ना ये अमरीकन प्यारे, ये तो है हिंदुस्तान का ! एक अन्य गीत है- चंदा ओ चंदा किसने चुराई तेरी मेरी निंदिया, मैं जागूं तो सो जाए! एक गीत के बोल हैं- चंदा को ढूंढने सभी तारे निकल पड़े! आपने वह गीत भी सुना होगा- दम भर जो उधर मुंह फेरे ओ चंदा आ, मैं उनसे प्यार कर लूंगी, बातें हजार कर लूंगी ! चंदा है तू मेरा सूरज है तू, ओ मेरी आंखों का तारा है तू!’ हमने कहा, ‘आसमान के चंदा को हर कोई देखता है लेकिन राजनीतिक पार्टियों को चुनावी चंदा अत्यधिक प्रिय है।
जैसे पूर्णिमा से अमावस के बीच आसमान में चंदा घटता है, वैसे ही कुछ दलों का चंदा कम होता चला जाता है। जिस पार्टी का सितारा बुलंदी पर रहता है, उसका चंदा दिन दूना, रात चौगुना बढ़ता है। अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने 1969 में चंदा पर पहला कदम रखा था।
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छत्तीसगढ़ के संत कवि पवन दीवान कवि सम्मेलनों में गीत गाते थे- एक थी लड़की मेरे गांव में चंदा जिसका नाम था! फिलहाल बीजेपी को भारी जबरदस्त पार्टी मानकर खुलेआम मोटी रकम का चंदा दिया जा रहा है, जिसकी चमक चुनावों में दिखाई दे रही है। लुभावने वादे की बुनियाद में अरबों रुपये का चंदा रहता है।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा