मणिपुर के राज्यपाल का प्लान (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के बाद अब शांति स्थापना के लिए जरूरी है कि पुलिस थानों और शस्त्रागार से लूटे गए हथियारों को बरामद किया जाए. इन्हीं हथियारों से वहां कुकी और मैतेई समुदायों के बीच खूनखराबा होता रहा. इसके अलावा पड़ोसी देश म्यांमार से भी वहां हथियारों की खेप आती रही. इनमें एसाल्ट राइफल, कार्बाइन का समावेश था। सुरक्षा बल व्यापक तलाशी अभियान चलाकर यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ऐसे तमाम छोटे हथियार जब्त कर लें जिनसे हिंसा की जाती है।
मणिपुर के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला ने सभी समुदायों से अपील की कि अवैध और लूटे हुए शस्त्र समर्पित कर दें. इसके बाद मैतेई समुदाय के उग्रवादी गुट अरम्बाई तेंगोल ने इम्फाल पश्चिम में 246 शस्त्र वापस लौटाए. राज्य के अन्य भागों में भी 100 से ज्यादा हथियारों को लौटाया गया. इम्फाल पूर्व के बीजेपी विधायक ने अपने घर के बाहर अंग्रेजी और मैतेई भाषा में पोस्टर लगवाया कि छीने हुए हथियार यहां लाकर सौंप दें. मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीपसिंह के अनुसार लूटे गए 6,000 शस्त्रों में से 1200 शस्त्र सुरक्षा बलों ने बरामद कर लिए हैं।
अब भी हजारों हथियार उपद्रवियों के पास मौजूद हैं. तत्कालीन मुख्यमंत्री एन बिरेनसिंह ने नववर्ष पर जनता से माफी मांगी थी. उसके बाद कुछ ही घंटों में इम्फाल वेस्ट जिले में गोलीबारी हुई थी. बिरेनसिंह की प्रशासकीय विफलता की वजह से राज्य में उग्रवादी गुटों की हलचलें तेज होती चली गई थीं. जब तक पुलिस व शस्त्रागारों से लूटे गए हथियार पूरी तरह बरामद नहीं होते तब तक स्थायी शांति स्थापित होना कठिन है. इसके अलावा मणिपुर को अशांत और धधकता रखने के लिए पड़ोसी देश से आनेवाली हथियारों की खेप पर भी सख्ती से रोक लगानी होगी।
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राष्ट्रपति शासन के दौरान यह प्रक्रिया तेज होनी चाहिए. इसके अलावा दोनों संघर्षरत समुदायों के नेताओं से चर्चा कर मणिपुर हिंसा का स्थायी समाधान निकालने के गंभीरता से प्रयास करने होंगे. केंद्र सरकार ने भी समस्या का तत्काल समाधान करने की बजाय उसे बढ़ने दिया. यदि मुख्यमंत्री से पहले ही इस्तीफा लेकर राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता तो हिंसा पर जल्दी काबू पाया जा सकता था।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा