गाजा युद्ध क्षेत्र में जान गंवा रहे सैकड़ों पत्रकार (सौजन्यः सोशल मीडिया)
नवभारत डिजिटल डेस्क: अफसोस की बात यह है कि किसी भी संघर्ष विराम में पत्रकारों की इन खूनी शहादतों पर कोई देश या नेता एक शब्द नहीं कहते। पत्रकारों की निर्मम हत्या के प्रति किसी का कोई चिंता ही नहीं है। न तो संयुक्त राष्ट्र में इसके लिए कोई प्रस्ताव पास हुआ और न ही कतर से लेकर अमेरिका तक में पत्रकारों की इन हत्याओं पर किसी ने कोई दो शब्द कहे। सिर्फ युद्ध क्षेत्र में ही नहीं मारे जा रहे, बल्कि कई देश भी पत्रकारों के लिए बेहद खतरनाक हो चुके हैं। ऐसे 4 सबसे खतरनाक देशों में पाकिस्तान, मैक्सिको, ईराक और म्यांमार शामिल हैं। भले इस सदी को वैश्विकरण और सहनशीलता की सदी कह रहे हों, लेकिन हाल के वर्षों में पत्रकारों की जिस बर्बर तरीके से हत्या की जा रही है, खुलेआम उन पर बम फेंक दिए जाते हैं, ऐसा इतिहास में शायद ही कभी पहले हुआ हो। महज 10 दिनों के अंदर गाजापट्टी के अंदर दो बार पत्रकारों पर वीभत्स हमला हुआ है। पहली बार 6 पत्रकारों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया और महज एक हफ्ते के बाद ही दूसरी बार यहीं पर हुए एक ऐसे हमले में 5 पत्रकारों ने फिर मौके पर दम तोड़ा।
25 अगस्त को गाजापट्टी के एक अस्पताल पर पूरी दुनिया ने देखा कि किस तरह अमेरिका ऑन कैमरा हवाई हमला कर रहा है। गाजापट्टी के इस नासिर अस्पताल पर इजराइल के हवाई हमले में 20 लोगों ने ऑन कैमरा दम तोड़ दिया, जिनमें 5 पत्रकार भी थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हाल के दिनों में पत्रकारिता कितना जोखिमभरा पेशा बन चुका है। ग्लोबल रिस्क रिपोर्ट 2025 के मुताबिक इस समय दुनिया में 60 सशस्त्र संघर्ष चल रहे हैं, जिनकी रिपोर्ट पत्रकारों को करनी ही पड़ती है और इस दौरान सरकारें और सेनाएं कलम के इन सिपाहियों को मौत की नींद सुला रहे हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपीजे) के मुताबिक 2024 में दुनियाभर के 124 बेकसूर कलमकार सशस्त्र संघर्ष के शिकार हुए थे। तीन दशकों में संघर्ष के क्षेत्र में पत्रकारों की ये सबसे ज्यादा मौतें थीं। इनमें से 70 फीसदी मौतें अकेले इजराइल द्वारा गाजा में की गई युद्ध की कार्रवाई के दौरान की गई। 2024 में युद्ध क्षेत्र में मारे गए सभी पत्रकारों में से अकेले 85 पत्रकार गाजापट्टी में मारे गए थे। जबकि इसके पहले 2023 में कुल 102 और 2022 में कुल 69 पत्रकारों की मौत संघर्ष वाले युद्ध क्षेत्रों में हुई थी। यूनेस्को ने भी 2024 के अपने आंकड़ों में बताया है कि 60 फीसदी से ज्यादा पत्रकार गाजापट्टी के युद्ध क्षेत्र में मारे गए थे।
19 वर्षों में 1,668 हताहतः 2003 से 2022 के बीच रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) संस्था के मुताबिक युद्ध क्षेत्र में कुल 1668 पत्रकार हताहत हुए थे। इस तरह 80 पत्रकार हर साल संघर्ष के क्षेत्रों में मारे गए। संघर्ष क्षेत्रों में जान गंवाने वाले ये पत्रकार किसी भी तरफ के नहीं होते। ये तो युद्ध क्षेत्र की हकीकत को बस लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। दुर्भाग्य की बात है कि यहां अपनी जान की बाजी लगाकर बेमतलब के संघर्षों को आईना दिखाने वाले पत्रकारों को ही बेरहमी से निशाना बनाया जा रहा है। इन संघर्षों में सैनिक और आमजन वहीं के मारे गए, जहां ये संघर्ष चल रहे हैं, जबकि मारे जाने वाले पत्रकार पूरी दुनिया के रहे। हैरानी की बात यह है कि इस सबसे किसी को कोई परवाह नहीं है। न प्रभावशाली अंतरराष्ट्रीय संगठन पत्रकारों की बढ़ रही मौतों से चिंतित है और न ही किसी देश ने इस बात पर कोई ध्यानाकर्षण कदम उठाया है। संयुक्त राष्ट्र और कुछ दूसरे स्रोतों के मुताबिक गाजापट्टी में 242 से 274 पत्रकार मारे जा चुके हैं और ये सब स्थानीय पत्रकार नहीं बल्कि दुनिया के हर हिस्से से यहां रिपोर्टिंग करने आए पत्रकार थे। अब पत्रकारों के सहायक स्टाफ को भी निशाना बनाया जा रहा है। ड्राइवरों, पत्रकारों के कैमरामैनों और उनका सामान लेकर चलने वाले मजदूरों को भी निशाना बनाया जा रहा है।
लेख-लोकमित्र गौतम के द्वारा