
शराबबंदी पर देशव्यापी बहस की आवश्यकता (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: इस प्रदर्शन में गुन्जाहल्ली, रायचुर से लक्ष्माम्मा भी मौजूद थीं अपने 18 वर्षीय पोते का फोटो लिए हुए, जिसे अब शराब की लत पड़ गई है। उनका कहना है ‘हर दिन इस डर से आरंभ होता है कि घर का कोई मर्द शराब के नशे में धुत होकर लौटेगा और फिर से हम महिलाओं की पिटाई करेगा.’ शराब की वजह से उन्होंने अपने पति को खोया, बेटे को इसकी लत में पड़ते हुए देखा और अब उसी रास्ते पर अपने पोते को चलते हुए देख रही हैं। शराब से राज्य सरकारों के पास अच्छा खासा राजस्व आता है, जिसे वह खोना नहीं चाहती। जिन राज्यों में शराबबंदी है, जैसे गुजरात व बिहार, उनमें शराब की अवैध बिक्री होती है, नकली शराब से मौतों की अक्सर खबरें सामने आती रहती हैं, इसलिए शराबबंदी हटाने की मांग उठती रहती है।
बहरहाल, फ्रीडम पार्क में जो गुस्सा देखने को मिला वह नया नहीं था। 30 से अधिक संगठनों ने मिलकर मद्य निषेध आंदोलन पिछले लगभग दस वर्षों से चलाया हुआ है। इनके प्रमुख विशाल प्रदर्शन 2016, 2018, 2019, 2023 और अब 2025 में हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त छोटे छोटे प्रदर्शन तहसील व जिला स्तर पर सालभर जारी रहते हैं। इसके बावजूद महिलाओं का कहना है कि कुछ भी परिवर्तन नहीं आया है।फ्रीडम पार्क में सिंधनूर से महबूबा फिरदौस भी आई हुई थीं। उन्होंने बताया, ‘शराब के नशे में मेरे बेटे मुझे पीटते हैं। कोई पड़ोसी हस्तक्षेप नहीं करता। हम किसके पास जाए?’ एक अन्य महिला ने अपना दुखड़ा इस तरह से सुनाया, ‘मेरा बेटा शराब पीने के बाद अपनी पत्नी की पिटाई करता था। उसकी पत्नी उसे छोड़कर चली गई। इसके बाद भी उसने शराब पीना जारी रखा और एक दिन उसके शरीर ने उसका साथ छोड़ दिया। हमारे पास उसका दाह संस्कार करने के भी पैसे नहीं थे।
महिलाओं ने बताया कि किस तरह शराब ने उन्हें कम आयु में विधवा कर दिया, बच्चों को घर चलाने के लिए मेहनत-मजदूरी करनी पड़ती है, घर कर्ज और गरीबी में डूब जाता है। फ्रीडम पार्क में प्रदर्शनकारी महिलाओं की मुख्य रूप से दो मांगें थीं- शराब लाइसेंस पर ग्रामसभा के अधिकार को पुनः स्थापित किया जाए और गांव-स्तर की महिला निगरानी समितियां स्थापित की जाएं। हरियाणा, महाराष्ट्र व राजस्थान जैसे राज्यों में ग्रामसभा का निर्णय अंतिम होता है कि उनके कार्य क्षेत्र में शराब की दुकान खुल सकती है या नहीं। कर्नाटक में यह प्रावधान 2016 तक जारी था, जब तत्कालीन सरकार ने उसे हटा दिया। प्रदर्शनकारी महिलाएं इस प्रावधान की बहाली चाहती हैं और वह भी सख्त नियमों के साथ कि 10 प्रतिशत ग्रामसभा सदस्यों को अनुमति को वीटो करने का अधिकार दिया जाए, जैसा कि कुछ राज्यों में है।
ये भी पढ़ें– नवभारत विशेष के लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
इसके अतिरिक्त उनकी यह भी मांग है कि महिला समितियों को शराब का अवैध धंधा कर रहे घरों, किराने की दुकानों, स्टॉल्स या शेड्स बंद कराने का कानूनी अधिकार हो। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने प्रदर्शनकारी महिलाओं से मुलाकात करने के बाद उनकी मांगों का संज्ञान लेने का आश्वासन दिया है। शराबबंदी पर अभी तक अनेक सर्वे हो चुके हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के डाटा के अनुसार शराबबंदी के बाद शारीरिक या भावनात्मक हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं का प्रतिशत काफी कम हुआ है। 2023 के सर्वे के मुताबिक, 70 प्रतिशत परिवारों ने माना है कि उनके घर के पुरुषों द्वारा शराब न पीने से उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है। घर में शांति और सम्मान भी बढ़ा है.
नशे में हिंसा करते हैं मर्द
बेंगलुरु के फ्रीडम पार्क में कर्नाटक के कोने- कोने से आई हजारों महिलाओं ने मांग की कि शराब पर पाबंदी लगाई जाए और अवैध बिक्री के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जाए। इस राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन का आयोजन अनेक महिला संगठनों ने संयुक्त रूप से किया था.
लेख- नरेंद्र शर्मा के द्वारा






