एकनाथ शिंदे (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे को पीडब्ल्यूडी व शहरी विकास जैसे मलाईदार विभाग दिए गए लेकिन वह अपने गांव जाकर बागवानी कर रहे हैं। ऐसा क्यों?’’
हमने कहा, ‘‘बागवानी करना बहुत अच्छी बात है। बागवान या माली प्रकृति के निकट रहता है और फलों व फूलों के पौधे लगाता है, पानी सींचता है, खाद डालता है। अपनी बगिया में जब सुंदर फूल खिलते हैं तो खुशी से उसका मन बाग-बाग हो जाता है। शहरों में प्रदूषण है जबकि गांव के बाग-बगीचे में शुद्ध आक्सीजन है। बागवानी एक हॉबी है। बहुत से पैसेवाले लोग भी अपने लॉन के किनारे पौधों की सजावट करते है जिसे देखकर तबीयत हरी हो जाती है। शिंदे अपना मन बहलाने के लिए गार्डनिंग कर रहे हैं तो करने दीजिए।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, चाहे राजनीति हो या बगीचा, वहां घास फूस या खरपतवार साफ करनी पड़ती है। निंदाई-गुड़ाई कर मिट्टी को उपजाऊ बनाकर मनचाहे पौधे रोपे जाते हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी महाराष्ट्र में राजनीति की उपजाऊ जमीन बनाकर पार्टी हाईकमांड को प्रसन्न कर दिया। अब कोई कितना भी रूठे, अथवा नाराजी दिखाए, कोई फर्क नहीं पड़ता! वैसे बागवानी एक सृजनात्मक या क्रिएटिव कार्य है। इसे और अच्छे से सीखना है तो शिंदे इजराइल का दौरा करें जहां बहुत कम पानी में पौधे और फसलों की पैदावार की जाती है।’’
हमने कहा, ‘‘अपने यहां भी बागवानी की शानदार परंपरा रही है। अपनी पत्नी सत्यभामा की जिद पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण देवराज इंद्र के बगीचे नंदनकानन से पारिजातक वृक्ष द्वारका ले आए थे और वहां उसका रोपण कर दिया था। आपने मुगल गार्डन और शालीमार गार्डन का नाम सुना होगा। 2 दशक पहले अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी की फिल्म ‘बागबान’ आई थी जिसमें बैंक की सर्विस से रिटायर होते समय अमिताभ सोचते हैं कि अब बच्चे हमारा ध्यान रखेंगे।”
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हमने कहा, ‘‘हमें कुछ करने-धरने की जरूरत नहीं, उनकी संतानें उनका सपना तोड़ देती हैं और माता-पिता को एक दूसरे से जुदा कर देती हैं। ‘बागबान’ में जीवन का यथार्थ दिखाया गया है कि संतानों से बहुत ज्यादा उम्मीद मत रखो, उनकी भी अपनी जिम्मेदारियां होती हैं। बागबान या माली को माखनलाल चतुर्वेदी ने महत्व देते हुए अपनी कविता ‘पुष्प की अभिलाषा’ में लिखा- मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक!’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा