मोहम्मद मुइज़्ज़ू और नरेंद्र मोदी (डिजाइन फोटो)
इंडिया आउट अभियान चलाकर सत्ता में आए मालदीव के चीन समर्थक राष्ट्रपति को देर से ही सही, समझ में आ गया कि भारत से अच्छे संबंध रखने में ही उनके देश की भलाई है। मालदीव का प्रेसीडेंट बनने के बाद वह चीन की यात्रा पर गए थे और उसके साथ रक्षा समझौता किया था। उन्होंने भारत पर यह दबाव भी डाला था कि वह मालदीव में तैनात अपने छोटे सैनिक समूह को वापस बुला ले।
भारत ने इसे मान लिया और वहां असैनिक स्टाफ भेज दिया था। भारत ने अपने नागरिकों को पर्यटन के लिए मालदीव की बजाय लक्षद्वीप का विकल्प दिया था। इससे मालदीव का टूरिज्म एकदम कम हो गया। अंतत: मालदीव के ध्यान में आ गया कि हिंद महासागर में भारत ही उसका सबसे बड़ा पड़ोसी है और संकट की घड़ी में वही काम आ सकता है, न कि उतनी दूर स्थित चीन!
भारत हमेशा मालदीव को सहयोग देता रहा है। जब 1988 में वहां तख्ता पलट हुआ था या जब 2014 में वहां पीने के पानी का संकट उत्पन्न हुआ था, तब भारत ही संकटमोचक साबित हुआ। मुइज्जू के चुने जाने के बाद भी भारत ने मालदीव की यह मांग स्वीकार कर ली थी कि 50 मिलियन डॉलर के ट्रेजरी बिल का भुगतान 1 वर्ष के लिए टाल दिया जाए।
यह भी पढ़ें- विकास में तेजी लानी होगी, नक्सलवाद नियंत्रण की दिशा में कदम
इस समय भी मुइज्जू की प्रधानमंत्री मोदी से चर्चा के बाद दोनों देशों के बीच 400 मिलियन डॉलर और 3,000 करोड़ रुपए मुद्रा की अदलाबदली पर समझौता हुआ। मालदीव की अर्थव्यवस्था की मदद के लिए मुइज्जू ने भारतीय पर्यटकों को मालदीव आते रहने के लिए कहा। इससे दोनों देशों के रिश्तों में संतुलन आएगा।
दोनों देश आर्थिक व समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं। मुइज्जू ने कहा कि सामाजिक आर्थिक क्षेत्र तथा बुनियादी ढांचे के विकास में भारत मालदीव का प्रमुख सहयोगी है। प्रधानमंत्री मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति की मुलाकात की राह तब बनी जब मुइज्जू ने भारत की आलोचना करनेवाले अपने 3 मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया था।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा