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नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को प्रधानमंत्री मोदी का स्वाधीनता दिवस संबोधन पसंद नहीं आया। उन्होंने कहा कि मैं इस बात से बहुत व्यथित महसूस कर रहा हूं कि पीएम ने अपने 103 मिनट के भाषण में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम का उल्लेख नहीं किया। पवार ने याद दिलाया कि नेहरू ने अपनी जवानी के अमूल्य वर्ष स्वाधीनता संग्राम को अर्पित कर दिए थे और समूची दुनिया को शांति का संदेश दिया था। उनके इतने व्यापक योगदान के बावजूद मोदी ने उनका नाम लेना जरूरी नहीं समझा। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।’
हमने कहा, ‘क्या अब शरद पवार मोदी को सिखाएंगे कि उन्हें क्या बोलना है? पहले जनसंघ और फिर बीजेपी की बुनियाद नेहरू-गांधी विरोध व नफरत पर टिकी रही। नेहरू की नीतियों से बीजेपी को हमेशा बदहजमी होती रही है। नेहरू-गांधी परिवार की लोकप्रियता की वजह से जनसंघ बीजेपी को लंबे समय तक सत्ता के लिए तरसना पड़ा।
एक समय था जब बच्चे ‘लाइफ ऑफ ए ग्रेट मैन’ पर सिर्फ गांधी-नेहरू का निबंध लिखा करते थे। नेहरू की याद भुलाने की पिछले 11 वर्षों से लगातार सुनियोजित कोशिश हो रही है। नेहरू मेमोरियल म्यूजियम को सभी प्रधानमंत्रियों के म्यूजियम में बदलकर मोदी सरकार ने देवगौड़ा और गुजराल जैसे बौनों को नेहरू की बराबरी में ला दिया। यहां तक कि नेहरू के 17 वर्ष की तुलना में कुछ महीने प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरणसिंह और चंद्रशेखर को भी उनके समकक्ष ला दिया।
नेहरू की पंचवर्षीय योजनाएं, गुटनिरपेक्षता, देश के औद्योगिकरण के लिए इस्पात कारखाने बनवाना, भाखड़ा-नंगल बांध का निर्माण, समाजवादी अर्थव्यवस्था कुछ भी बीजेपी को पसंद नहीं है।
पीएम मोदी ने जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का श्रद्धापूर्वक स्मरण किया। हर पार्टी के इस्टदेवता अलग रहते हैं। विभिन्न संस्थाओं से नेहरू का नाम हटाने का सिलसिला जारी रहा। बीजेपी को तकलीफ है कि निधन के 61 वर्ष बाद भी देशवासी नेहरू को क्यों याद करते हैं।’
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पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, देश की आजादी के लिए हुए आंदोलन से आरएसएस और कम्युनिस्टों ने दूरी बरती थी। मोदी चाहते हैं कि भारतवासी पुरानी यादों को भूलकर वर्तमान के जुमलों में जिएं। नमो-नमो करें और 2047 तक भारत को विश्व की महाशक्ति बनाने का सुनहरा स्वप्न देखें।
आरएसएस के प्रति आस्था रखकर ‘संघ शक्ति युगे-युगे’ कहें। बीजेपी मानकर चलती है कि महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार का समय पीछे छूट गया है और अजित पवार ही उसके काम के हैं।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा