पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, समझ में नहीं आता कि कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी इतने अधीर क्यों हो उठे हैं? उन्होंने ममता बनर्जी के बारे में कहा कि जो बंगाल में कांग्रेस को खत्म करने पर तुली हैं, उनका मैं स्वागत नहीं कर सकता। मुझे बंगाल में अपनी पार्टी को बचाना है। कांग्रेस बंगाल में 14 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।’’
हमने कहा, ‘‘अधीर की अधीरता स्वाभाविक है क्योंकि वे लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं और बंगाल प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख भी हैं। उन्होंने कहा कि ममता गठबंधन या एलायंस छोड़कर गई थीं। उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता। वह बीजेपी के साथ भी जा सकती हैं।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि ममता बनर्जी को लेकर फैसला करनेवाले अधीर रंजन कौन होते हैं? ममता ने पहले कहा था कि यदि लोकसभा चुनाव के बाद इंडिया ब्लाक की सरकार बनती है तो वह बाहर से समर्थन देंगी लेकिन अब वह कह रही हैं कि वह सरकार का हिस्सा बनेंगी। इससे स्पष्ट है कि वह एलायंस के साथ हैं।’’
हमने कहा, ‘‘खड़गे की सोच व्यापक और अखिल भारतीय परिप्रेक्ष्य में है। वो इंडिया गठबंधन की मजबूती और उसमें ममता की भूमिका व सहयोग का विचार कर रहे हैं जबकि अधीर रंजन को सिर्फ बंगाल की राजनीति की फिक्र है जहां उनका ममता से टकराव बना हुआ है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अधीर रंजन को चुप कराना है तो उन्हें भजन सुनाना चाहिए- मन रे तू काहे ना धीर धरे! उन्हें समझाया जा सकता है कि अधीर न होकर धीरज रखें। श्रद्धा और सबूरी रखने से ही सब होता है। अधीर या बेचैन रहकर कोई फायदा नहीं है। उन्हें यह पंक्ति सुनाई जाए- धीरे-धीरे से मना, धीरे सब कुछ होय! अधीर रंजन चौधरी बंगाल की पॉलिटिक्स को लेकर अधीर होकर छटपटाएंगे तो इससे बनता काम बिगड़ जाएगा। खड़गे यही चाहते हैं कि कांग्रेस को केजरीवाल, अखिलेश यादव, तेजस्वी और ममता सब का साथ मिलता रहे। मोदी ने भी तो सबका साथ सबका विकास का फार्मूला दिया था।’’