पीएम मोदी और मल्लिकार्जुन खड़गे (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आव देखा न ताव, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘झूठों का सरदार’ कह दिया। क्या पीएम को झूठा कहना खड़गे की कुंठा को दर्शाता है?’’
हमने कहा, ‘‘राजनीति में इस तरह के लांछन लगते ही रहते हैं और चुनाव किसी फ्री स्टाइल कुश्ती से कम नहीं होता। पालिटिक्स में आना है तो चमड़ी मोटी रखकर सब कुछ सहने की क्षमता रहनी चाहिए। समाजवादी नेता डा. राममनोहर लोहिया ने तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की शेरवानी और चूड़ीदार पायजामे पर टिप्पणी करते हुए इसे शाहजहां के तबलची की पोशाक कहा था। नेहरू ने इसका बुरा नहीं माना।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमें वी। शांताराम की पुरानी फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ की याद आती है जिसमें फिल्म की हीरोइन संध्या गाती है- सैंया झूठों का बड़ा सरताज निकला, मुझे छोड़ चला बड़ा धोखेबाज निकला। राजेश खन्ना की एक फिल्म का नाम था- सच्चा झूठा! आपने गीत सुना होगा- मोहब्बत की झूठी कहानी पे रोये, बड़ी चोट खाई जवानी पे रोये। एक फिल्म का नाम है तू झूठी, मैं मक्कार!’’
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हमने कहा, ‘‘संत कबीर दास ने कहा था- सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप! इसका अर्थ है कि सच बोलने से बड़ा कोई तप नहीं है और झूठ बोलने से बड़ा पाप कोई नहीं है। इतने पर भी लोग बात-बात में झूठ बोलते हैं। वकालत का धंधा झूठ पर ही चलता है। अदालत में झूठे गवाह पेश किए जाते हैं। हिटलर के सहयोगी गोएबल्स ने कहा था कि एक झूठ यदि 100 बार दोहराया जाए तो लोग उसे सच मानने लगते हैं। राजनीतिक पार्टियों का प्रचार भी ऐसा ही रहता है। जब सत्ता में आने पर नेताओं को चुनावी वादे की याद दिलाई जाए तो बेशर्मी से कहते हैं कि वह तो एक चुनावी जुमला था!’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, झूठ कहां नहीं है। स्वस्थ लोग बीमारी का बहाना कर छुट्टी लेते हैं। दफ्तर में देर से आने के लिए झूठा कारण बताते हैं। होमवर्क नहीं करने वाला विद्यार्थी टीचर के पूछने पर झूठ का सहारा लेता है। धर्मराज युधिष्ठिर ने द्रोणाचार्य के पूछने पर कहा था- अश्वत्थामा हतो, नरो वा कुंजरोवा (अश्वत्थामा मारा गया था, नर था या हाथी!) इससे शोकमग्न होकर द्रोणाचार्य ने शस्त्र त्याग दिए थे और मौका देखकर पांडवों के सेनापति दृष्टद्युम्न ने उनका सिर काट दिया था। झूठ बड़ा अनर्थ करवाता है। इसलिए कहा गया है- दिल को देखो, चेहरा ना देखो, चेहरों ने लाखों को लूटा, दिल सच्चा और चेहरा झूठा!’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा