पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, रामायण की कितनी ही बातें आज के युग में भी लागू होती है. आपने संदरकांड में पढ़ा होगा- विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत, बोले राम सकोप तव, भय बिन होय न प्रीत! इसमें मोटे तौर पर यही संकेत मिलता है कि किसी जड़बुद्धि को प्रेम सत्यता या विनय के साथ की गई बात समझ में न आए तो उसे धमकाना भी पड़ता है. भय दिखाए बगैर प्रेम नहीं हो सकता. मालदीव के साथ यही हुआ. उसके मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी की लक्षद्वीप यात्रा और वहां गोताखोर की पोशाक पहनकर स्नार्केलिंग (डुबकी लगाने) पर उपहास व अपमानजनक टिप्पणी की जिसको भारत ने बर्दाश्त नहीं किया. मालदीव के राजदूत को विदेश मंत्रालय में बुलाकर फटकारा गया. लोगों ने बड़ी तादाद में मालदीव जानेवाली फ्लाइट से यात्राएं रद्द कर दी. मालदीव के गुस्ताख मंत्रियों को पद से हटा दिया गया. पूर्व राष्ट्रपति नाशिक ने भी वर्तमान चीन समर्थक राष्ट्रपति मुइज्जू को खरी-खरी सुना दी. इससे मुइज्जू घबरा गए. उनके तेवर ढीले पड़ गए. उनकी समझ में आ गया कि भारत से पंगा लेना बहुत महंगा पड़ेगा. भात जरूरी चीजों की सप्लाई और पर्यटन रोक देगा. भारत के बायकॉट से मुइज्जू भयभीत हो गए.’’
हमने कहा, ‘‘मुइज्जू पर यह कहावत लागू होती है- ये मुंह और मसूर की दाल! वो अपना सा मुंह लेकर रह गए. मुंह छुपाने की नौबत आ गई. वो समझ गए कि छटाक भर के मालदीव को सुपर हैवीवेट भारत से बदतमीजी बहुत महंगी पड़ेगी. मुइज्जू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर उनके देश का विपक्ष अड़ गया.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, अब तो मुइज्जू को समझ में आ गया कि मालदीव के बेवकूफ मंत्रियों ने मोदी पर टिप्पणी कर छोटा मुंह बड़ी बात कह डाली. अब डैमेज कंट्रोल के लिए मुइज्जू भारत आना चाहते हैं. मालदीव ने इस महीने के अंत में मुइज्जू की भारत यात्रा का प्रस्ताव रखा है. लगता है कि वो दिल्ली आकर मोदी से माफी मांगेंगे और गिड़गिड़ाएंगे कि उनके देश के प्रति सख्त रुख न अपनाया जाए और बहिष्कार न किया जाए. मालदीव की नादानी को माफ कर दिया जाए.’’
हमने कहा, ‘‘सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता. चीन से चिपककर मुइज्जू अपने दश का वैसा ही नुकसान करेंगे जैसा पाकिस्तान और श्रीलंका ने किया है. भारत के साथ अच्छे और भलमनसाहत वाले संबंध रखने में ही मालदीव की भलाई है.’’