(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, यह पूर्व शिवसेना सांसद आनंदराव अड़सूल की चेतावनी नहीं, धमकी है कि उन्हें 15 दिनों के भीतर राज्यपाल बनाया जाए अन्यथा वह सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर देंगे। क्या बीजेपी, केंद्र सरकार और गृहमंत्री अमित शाह इस धमकी से घबराकर अड्सूल के सामने झुक जाएंगे? हमें अड़सूल के अड़ियल रवैये के बारे में बताइए।”
हमने कहा, “इसका बैकग्राउंड आपको समझना होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में नवनीत राणा ने एनसीपी के समर्थन से अमरावती सीट पर अड़सूल को हराया। इसके बाद अड़सूल ने जाति प्रमाणपत्र की वैधता का मुद्दा उठाकर नवनीत के निर्वाचन को चुनौती दी। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद अड़सूल शिंदे के नेतृत्ववाली शिवसेना में शामिल हो गए। इस वर्ष लोकसभा चुनाव में अड़सूल को जैसे-तैसे समझा-बुझाकर या बहलाकर उम्मीदवारी से दूर रखा गया और नवनीत राणा को बीजेपी-महायुति का प्रत्याशी बनाया गया। नवनीत यह चुनाव हार गईं। अब अड़सूल का कहना है कि उन्हें अमरावती से चुनाव नहीं लड़ने की एवज में राज्यपाल का पद देने का वादा किया गया था। यह वादा एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की मौजूदगी में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने लिखित रूप से किया था। तब बीजेपी ने शिंदे की शिवसेना को केंद्रीय मंत्रिमंडल में 2 पद तथा राज्यपाल के 2 पद देने का वादा किया था। शिंदे और फडणवीस दोनों ने हस्ताक्षर कर उन्हें (अड्सूल को) गवर्नर बनाने की मांग वाला पत्र केंद्र को भेजा था लेकिन नवनियुक्त 9 गवर्नरों की सूची में अड्सूल का नाम नहीं आया। शिंदे गुट की शिवसेना को केंद्र में सिर्फ 1 राज्यमंत्री का पद दिया गया। महाराष्ट्र से केवल बुजुर्ग बीजेपी नेता हरिभाऊ बागड़े को राज्यपाल बनाया गया। अड़सूल मान रहे हैं कि उनके साथ वादाखिलाफी की गई।”
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पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, चुनाव के मौके पर किया गया लुभावना वादा सिर्फ जुमला होता है। 2014 के चुनाव के समय मोदी ने भी तो जुमला फेंका था कि विदेश से कालाधन वापस लाकर हर देशवासी के बैंक खाते में 10-10 लाख रुपये जमा करा देंगे। इसलिए हवा-हवाई वादों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। इनका उद्देश्य लोगों को बुद्ध बनाना होता है। आपने गीत सुना होगा- ‘कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं, बातों का क्या ! अब अड्सूल को गुनगुनाना चाहिए- वादा तेरा वादा, वादे पे तेरे मारा गया, बंदा ये सीधा-सीधा!’ लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा