सक्षम अधिकारियों की ठेके पर नियुक्ति (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: सेवानिवृत्त अधिकारियों के अनुभव का लाभ उठाने के उद्देश्य से महाराष्ट्र सरकार ने उनकी सक्षमता व योग्यता देखकर रिटायरमेंट के बाद उन्हें 70 वर्ष की उम्र तक कांट्रैक्ट पर नियुक्त करने की योजना बनाई है। दीर्घकाल से यही धारणा रही है कि 60 वर्ष की उम्र के बाद इंसान शारीरिक और मानसिक तौर पर थक जाता है इसलिए उसे सेवानिवृत्त कर देना चाहिए। कुछ मामलों में यह आयु सीमा घटा कर 58 वर्ष भी कर दी गई। सरकार की यह भी सोच रही कि नवनियुक्त युवा कर्मचारी अधिक मेहनत, लगन एवं तत्परता से काम करेगा जबकि रिटायरमेंट निकट आते लोग सुस्त होने लगते हैं।
वास्तव में कार्यकुशलता व्यक्ति की मानसिकता व चरित्र पर निर्भर करती है। कभी-कभी युवा कर्मचारी भी निठल्ले या कामचोर पाए जाते हैं। सरकार की योजना ए और बी ग्रुप के वरिष्ठ अधिकारियों के लिए है जिन्हें संविदा या ठेके के आधार पर काम करने का अवसर दिया जाएगा और उनकी योग्यता देखते हुए 80,000 रुपए तक वेतन दिया जाएगा। भारत में 25 से 64 वर्ष की आयु के कार्यक्षम लोगों की संख्या 96 करोड़ से अधिक है। महाराष्ट्र में सेवानिवृत्ति की आयु 58 वर्ष है जिसे बढ़ाकर 60 वर्ष करने में सरकार टालमटोल करती है फिर 70 की उम्र तक काम देने की बात क्यों? क्या यह दोहरी नीति नहीं है? इससे तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों में असंतोष व्याप्त हो सकता है क्योंकि इन दोनों श्रेणियों में सर्वाधिक पद रिक्त हैं।
वह इस नीति को भेदभावपूर्ण मानेंगे। विगत वर्षों से सरकार रिटायरमेंट की आयु के बाद भी वरिष्ठ व अनुभव संपन्न प्रतिभाशाली नौकरशाहों को सेवा में कायम रखे हुए है। मोदी सरकार ने अजीत डोवाल, पीके मिश्रा, नृपेंद्र मिश्रा, पीके सिन्हा, बीएस बस्सी, बीवीआर सुब्रमण्यम, अमित खरे, तरुण कपूर की सेवाएं यथावत रखी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने प्रधान सचिव पीएन हक्सर को निवृत्ति के बाद भी बांग्लादेश युद्ध व बैंक राष्ट्रीयकरण के दौरान सेवा का मौका दिया था।
अटलबिहारी वाजपेयी ने भारतीय विदेश सेवा से निवृत्त ब्रजेश मिश्रा को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया था। पीसी अलेक्जेंडर व मोंटेकसिंह अहलूवालिया की मिसाल भी सामने है। प्रधानमंत्री मोदी के 11 वर्ष के कार्यकाल में दर्जनों नौकरशाहों को रिटायर होने के बाद सेवा विस्तार दिया गया। दूसरी ओर ऐसे भी सरकारी अधिकारी होते हैं जो 58 वर्ष की उम्र पूरी होने के पहले ही वीआरएस लेने का मन बना लेते हैं। निजी क्षेत्रों में भी कुशल व अनुभवी आईएएस अधिकारी सेवानिवृत्ति के बाद ले लिए जाते हैं। सवाल यह भी है कि कार्यक्षम अधिकारी अपने कार्यकाल में अगली सक्षम पीढ़ी क्यों नहीं तैयार करते?
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा