(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, हमें आश्चर्य है कि मुंबई में घुड़सवार पुलिस गश्त लगाएगी! क्या वहां जीप, जिप्सी, मोटरसाइकिलों की कमी पड़ गई? यह कोई ऊंचा-नीचा पहाड़ी इलाका भी नहीं है जहां घोड़ों का इस्तेमाल करना पड़े!”
हमने कहा, “मुंबई पुलिस में काफी समय पहले समाप्त किए गए अश्वारोही दल को पुनः शुरू करने की राज्य सरकार ने कुछ सोच समझकर ही मंजूरी दी है। इसके लिए 30 घोड़े खरीदे जाएंगे तथा पुलिस को घुड़सवारी का प्रशिक्षण देने के अलावा घोड़ों के आहार और देखभाल की ट्रेनिंग दी जाएगी। इस योजना के लिए 36।53 करोड़ रुपए का बजट तथा अन्य खर्च के लिए 1।88 करोड़ रुपए मंजूर किए गए हैं। सोचिए, जब घुड़सवार पुलिस गश्त लगाएगी तो अंग्रेजों के जमाने की याद आएगी। तब हॉर्स माउंटेड पुलिस रहा करती थी। थानेदार मोटर साइकिल की बजाय घोड़े पर सवार रहता था। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, बंगाल में आज भी घुड़सवार पुलिस के दस्ते हैं। जुलूस, प्रदर्शन या दंगा कंट्रोल करने के लिए घुड़सवार पुलिस बहुत उपयोगी है। वहां घोड़ा दौड़ाने से लोग डरकर काबू में आ जाते हैं। प्रशिक्षित घोड़ा किसी को कुचलता नहीं है लेकिन एकदम सामने या अगल-बगल से दौड़े तो लोग घबरा जाते हैं। पुलिस के घुड़सवार को ऊंचाई से सारा नजारा दिख जाता है कि कौन उपद्रव या गड़बड़ी कर रहा है।”
यह भी पढ़ें :- श्वान का मालिक के प्रति प्रेम अमर, 250 किमी चलकर पहुंचा घर
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, आप शायद यह भी दलील देंगे कि जीप और बाइक की बजाय घोड़ों का इस्तेमाल करने से पेट्रोल-डीजल का खर्च बचेगा और प्रदूषण भी रुकेगा लेकिन हम आपको बता दें कि मुंबई में 50-60 पहले विक्टोरिया कहलानेवाली ढेर सारी घोड़ा गाड़यां थीं जिन्हें हार्स कैरिज या टमटम कहा जाता था। आपने अशोककुमार और प्राण की पुरानी फिल्म ‘विक्टोरिया नं। 303’ में इसे देखा होगा। एक फिल्मी गीत भी था- टमटम से झांको ना रानीजी, गाड़ी से गाड़ी लड़ जाएगी। जब मुंबई महानगरपालिका ने देखा कि घोड़ागाड़ी चलने से शहर की सड़कों पर जगह-जगह घोड़ों की लीद गिरती है और मक्खियां पनपती हैं तो स्वच्छता के लिहाज से घोड़ा गाड़ी पर प्रतिबंध लगा दिया गया। अब घुड़सवार पुलिस के घोड़े सड़कों पर लीद करेंगे तो मनपा का सफाई का काम बढ़ जाएगा।”
हमने कहा, “जब राष्ट्रपति के अंगरक्षकों का शानदार घुड़सवार दस्ता है तो घुड़सवार पुलिस को लेकर किसी आपत्ति का सवाल ही नहीं उठता। घोड़े की वजह से उसे दाना-चारा खिलाने और मालिश करनेवाले सईस की भी जरूरत पड़ेगी। इससे रोजगार पैदा होगा। वेटरनरी डॉक्टर को भी काम मिलेगा।” लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा