
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, आदिम युग से ही इंसान और श्वान का साथ रहा है। कुत्ता चाहे देसी हो या विदेशी, वफादार प्राणी होता है। आदमी बेईमान हो सकता है, कुत्ता नहीं! मीडिया को वाचडॉग ऑफ डेमोक्रेसी कहा जाता है। सचमुच निस्वार्थ पत्रकार लोकतंत्र के पहरेदार होते हैं। अंग्रेजी के 3 अक्षरों को देखिए। जीओडी गॉड होता है। इन अक्षरों को उल्टा कर दीजिए तो अर्थ बदल जाता है। अंबानी परिवार के साथ आपने उनके गोल्डन रिट्रीवर डॉग की फोटो अखबार में छपी देखी होगी। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के पास भी कुत्ते पले हुए थे। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के पालतू कुत्ते का नाम ‘पीडी’ है। पुरानी बात है कि जब हिमंत बिस्वा सरमा दिल्ली में राहुल से असम की स्थिति पर चर्चा करने गए थे तो उनकी ओर ध्यान देने की बजाय राहुल अपने कुत्ते को बिस्किट खिलाने में लगे थे। इस उपेक्षा से क्षुब्ध होकर हिमंत ने हिम्मत दिखाई और कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चले गए और फिर असम के मुख्यमंत्री बन गए। यह सब कुत्ते की वजह से ही हुआ।”
हमने कहा, “आज आप कुत्ते की चर्चा क्यों कर रहे हैं? इसका कौनसा संदर्भ है?”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर निपाणी के निकट यमगरणी गांव का ‘महाराज’ नामक एक कुत्ता अपने मालिक कमलेश कुंभार के साथ आषाढ़ी एकादशी के निमित्त पंढरपुर गया था। कोल्हापुर जिले में वह कुत्ता वारकरियों की भीड़ में अपने मालिक से बिछुड़ गया। उसके खो जाने से सारा गांव दुखी हो गया। उस कुत्ते में धार्मिक संस्कार थे और भजन-कीर्तन के समय वहीं शांति से बैठकर सुना करता था। लोगों ने उसके लौटने की आशा खो दी थी लेकिन वह कुत्ता 250 किलोमीटर दूर से भूखा- प्यासा पैदल चलता अपने घर लौट आया। गांववालों ने उसके माथे पर टीका लगाकर और हार पहनाकर उसका स्वागत किया और जुलूस निकाला।”
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हमने कहा, “लोग कहते हैं कि श्वान की शोभा दरवाजे पर ही होती है। रईस लोग अपनी नेमप्लेट के नीचे एक प्लेट और चिपकाते हैं जिस पर लिखा रहता है बिवेअर ऑफ डॉग (कुत्ते से सावधान)। आपने भगवान दत्तात्रेय के चित्र में उनके साथ एक गाय और 4 कुत्ते देखे होंगे। सम्राट युधिष्ठिर जब हिमालय के रास्ते स्वर्गारोहण करने गए तो रास्ते में द्रौपदी व चारों छोटे भाई चल बसे। केवल युधिष्ठिर और उनका कुत्ता स्वर्ग के द्वार पर पहुंचे। पहरेदारों ने कुत्ते को प्रवेश देने से मना किया तो युधिष्ठिर अड़ गए कि इसके बगैर आना मुझे स्वीकार नहीं है। इस पर धर्म रूपी कुत्ते के साथ युधिष्ठिर को स्वर्ग में प्रवेश देना पड़ा था।” लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा






