महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार थमा (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार तोपें गरजने के बाद शांत हो गईं। अब सभी दम साध कर बैठे हैं कि मतदाता किसके पक्ष में अपना कौल देंगे। महाविकास आघाड़ी हो या महायुति, दोनों ने एक दूसरे के भ्रष्टाचार और कमियों का कच्चा-चिट्ठा खोलने में कसर बाकी नहीं रखी। खूब गड़े मुर्दे उखाड़े गए। चुनाव में यह होना ही था लेकिन जनता को क्या संदेश गया! वह तो यही समझी कि कोई भी दूध का धुला नहीं है।
प्रचार के अंतिम दिन तक एक-दूसरे पर कीचड़ उछाला गया। प्रचार के दौरान पार्टियों की तोड़फोड़, उद्योगपति से नेताओं की निकटता, चाचा-भतीजा विवाद, गद्दारी का आरोप जैसी कितनी ही बातें उछाली जाती रहीं। एनसीपी और शिवसेना जैसी पार्टियां तोड़ने से लोकसभा चुनाव के समय शरद पवार और उद्धव ठाकरे को लोगों की सहानुभूति मिली थी किंतु विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा लाभ पहुंचानेवाला दिखाई नहीं देता।
महायुति के प्रचार की दिशा अलग मुद्दों पर चली गई है। बीजेपी ने अपने प्रचार में ‘बटेंगे तो कटेंगे’ पर जोर दिया। अजीत पवार ने 5 वर्ष पहले क्या हुआ था, इसकी याद दिलाकर महायुति में नया विवाद छेड़ दिया है। अजीत के निशाने पर शरद पवार थे लेकिन वह सीधा जाकर बीजेपी को लगा। 2017 हो या 2019, बीजेपी के साथ सरकार बनाने को लेकर दिल्ली और मुंबई में कैसी बैठकें हुईं, यह बताकर अजीत पवार चुप बैठ गए।
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बीजेपी को ऐसी टिप्पणी पर आपत्ति नहीं जतानी थी। चाचा-भतीजे में मतभेद बढ़ रहे हैं तो उसके बीच पड़ने की बीजेपी को कोई आवश्यकता नहीं थी। उद्योगपति की मध्यस्थता को लेकर दिए बयान से शरद पवार की बजाय मोदी दिक्कत में आ गए हैं। सभी को पता है कि उद्योगपति के पवार और मोदी दोनों से अच्छे संबंध हैं। फिर भी एनसीपी और बीजेपी की संयुक्त सरकार गठन की प्रक्रिया में उनका सहभाग होना सभी को भारी पड़ेगा।
बाद में देवेंद्र फडणवीस ने खुलासा किया कि उस बैठक में उद्योगपति मौजूद नहीं थे। इसके अलावा वोट जिहाद तथा बटेंगे तो कटेंगे जैसे मुद्दे पर फडणवीस का कहना है कि अजीत ने इस मुद्दे को समझा ही नहीं। चुनाव में कांग्रेस की स्थिति अन्य पार्टियों से भिन्न है। राज्य की 2 बड़ी पार्टियां शिवसेना और एनसीपी टूट गईं लेकिन कांग्रेस में कोई फूट नहीं पड़ी।
केवल अशोक चव्हाण व कुछ नेता बीजेपी या शिंदे गुट में चले गए कांग्रेस का प्रचार मुद्दों पर आधारित रहा। संविधान, जाति जनगणना, ओबीसी आरक्षण, किसानों की समस्या जैसे मुद्दे राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने उठाए। बीजेपी को यदि मुख्यमंत्री पद चाहिए तो उसे शिंदे गुट से अधिक सीटें जीतनी होंगी। आघाड़ी और युति ने प्रचार में कोई कमी नहीं की। अब फैसला मतदाताओं के हाथ है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा