(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के पहले ही मुख्यमंत्री पद को लेकर कश्मकश शुरू हो गई है। सीएम की कुर्सी पर कितने ही नेताओं की निगाहे लगी हुई हैं। हमें बताइए कि उस कुर्सी में ऐसी क्या खास बात है?’’
हमने कहा, ‘‘उस समय की कल्पना कीजिए जब कुर्सियां थी ही नहीं! फैसले पंचायत में हुआ करते थे। दरी और गद्दी की देसी बिछायत पर आराम से पैर फैलाकर बैठे पंच किसी का हुक्का-पानी बंद करने या बहिष्कार का फैसला पहली ही पेशी में कर लिया करते थे। जब से कुर्सी आई, पेशी बढ़ने लगी। कुर्सी पर बैठा आदमी कभी जल्दबाजी में फैसला नहीं करता।’’
हमने कहा, ‘‘वह जानता है कि उसका सबसे बड़ा कर्तव्य अपनी कुर्सी को टिकाए और बचाए रखना है। कुर्सी उससे कहती है कि पब्लिक को पटानेवाले लोकलुभावन फैसले कर। दिल खोलकर लुटा दे सरकारी खजाना नहीं तो कुर्सी खोकर पड़ेगा पछताना! जब 3 पार्टियां मिलकर सरकार चलाती हैं तो तीन तिकट महाविकट जैसी हालत होने लगती है। इसलिए कुर्सी में हमेशा 4 मजबूत पाये रहने चाहिए। कुर्सी को लेकर संगीत कुर्सी या म्यूजिकल चेयर खेलनेवाले कम नहीं हैं।’’
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कौन सी कुर्सी बढि़या रहती है? राज्यपाल की शोभायमान कुर्सी या मंत्री पद की चलायमान कुर्सी? मुख्यमंत्री पद की कुर्सी की मजबूती का परीक्षण विश्वास मत से किया जाता है। कुछ कुर्सी ऐसी रहती हैं जिनमें भ्रष्टाचार या स्कैंडल का धुन लग जाता है।’’
हमने कहा, ‘‘इतिहास गवाह है कि केंद्र में प्रधानमंत्री पद की लड़खड़ाती कुर्सी पर चौधरी चरणसिंह और चंद्रशेखर जैसे नेता बैठे थे। कांग्रेस ने समर्थन वापस लिया तो उनकी कुर्सी कबाड़ बन गई थी। बीजेपी के पास कुछ आराम कुर्सियां या इजीचेयर हैं जिन पर उसके मार्गदर्शक मंडल के बुजुर्ग नेता निढ़ाल पड़े हुए हैं।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जो चंचल चित्त का नेता गोल घूमनेवाली रिवाल्विंग चेयर पर बैठता है, वह खुद चक्कर खाता है और दूसरों को भी चक्कर में डालता है। कुछ नेता ऐसे होते हैं जो किसी भी पार्टी की सरकार में घुसपैठ करना चाहते हैं। वे अपनी फोल्डिंग चेयर लेकर किसी भी मंत्रिमंडल के तंबू में घुस जाते हैं। जब तक उन्हें कुर्सी नहीं मिलती, वे कुर्सी का ख्वाब देखते रहते हैं।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा