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नवभारत डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, महायुति ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए संकल्प पत्र जारी किया है। यह जनकल्याण के लिए एक तरह का कमिटमेंट या प्रतिबद्धता है। इसे ध्यान से पढि़ए क्योंकि इसमें हर किसी का ध्यान रखा गया है। हमें लगता है कि आप भी इसे पसंद करेंगे।’’
हमने कहा, ‘‘जहां संकल्प है वहां सिद्धि है। ऐसा संकल्प यदि सफल हो जाए तो कायाकल्प हो जाएगा। महायुति में शामिल तीनों पार्टियां मानकर चल रही हैं- यूं ही कट जाएगा सफर साथ चलने में, कि मंजिल आएगी नजर साथ चलने में!’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमारी राय है कि कोई भी संकल्प सोचसमझकर करना चाहिए। प्रयागराज के संगम पर बैठा पंडा जब यजमान से संकल्प कराता है तो न जाने क्या मांग बैठता है। इसलिए जब भी संकल्प करना हो तो यथाशक्ति कोई भी दानपुण्य करने की बात करनी चाहिए। इंसान को अपनी हैसियत या औकात से ज्यादा का संकल्प नहीं करना चाहिए।”
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘राजा हरिश्चंद्र ने सत्य का संकल्प किया तो बहुत कष्ट झेलने पड़े। विश्वामित्र ने उन्हें परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजा बलि को उनके गुरू शुक्राचार्य ने चेतावनी दी कि वामन रूप लेकर विष्णु तुमसे छल करने आए हैं। इसलिए उनके मांगने पर कुछ देने का संकल्प मत करो। महादानी राजा बलि कहां माननेवाले थे! उन्होंने दान देने का संकल्प करने के लिए हथेली में जल लेना चाहा तो पानी की झरी में लघुरूप लेकर शुक्राचार्य बैठ गए। उन्होंने जल निकलने से रोक दिया। इस पर वामन ने झरी में एक सींक डालकर शुक्राचार्य की आंख फोड़ दी। वह पीड़ा से तिलमिलाकर बाहर निकल आए।
पड़ोसी ने कहा, ‘‘वामन ने बलि से 3 पग जमीन देने का संकल्प करवाया और फिर अत्यंत विराट त्रिविक्रम का रूप लेकर एक पग में धरती और दूसरे पग में आकाश नाप डाला और पूछा- बता राजा तीसरा कदम कहां रखूं? बलि ने कहा, तीसरा पग मेरे सिर पर रख दो प्रभु! भगवान ने ऐसा करते हुए बलि को पाताल भेज दिया। इसी तरह दानवीर कर्ण से संकल्प करवाते हुए इंद्र ने उसके कवच कुंडल ले लिए थे। इसलिए संकल्प में अतिरेक नहीं करना चाहिए। चादर की लंबाई देखकर ही पैर पसारना ठीक रहता है। संकल्प करने के बाद पूरा न करो तो पाप लगता है।’’
हमने कहा, ‘‘राजनीति में कैसा पाप और कैसा पुण्य! वोट हासिल करने के लिए संकल्प के अलावा कोई विकल्प नहीं है। पंछी को पकड़ने के लिए जाल तो बिछाना ही पड़ता है।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा