स्थानीय चुनाव लेंगे परीक्षा (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरद पवार ने अंतत: पार्टी संगठन में बदलाव किया।पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष पद पर 7 वर्षों तक रहे पूर्व मंत्री जयंत पाटिल के स्थान पर सातारा के शशिकांत शिंदे की नियुक्ति हुई। राकांपा की स्थापना के समय से उसकी राजनीति पश्चिम महाराष्ट्र और मराठा समाज के आसपास केंद्रित रही।विगत 26 वर्षों में यह पार्टी मुंबई और विदर्भ में प्रभाव जमाने में असफल रही।उसे समाज के सभी घटकों का समर्थन नहीं मिल पाया।अजीत पवार की बगावत के बाद पार्टी 2 हिस्सों में विभाजित हो गई।
लोकसभा चुनाव में शरद पवार गुट को कामयाबी मिली किंतु गत वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में अजीत पवार की राकांपा के 41 विधायक निर्वाचित हुए जबकि शरद पवार की पार्टी के केवल 10 विधायक चुने गए।महायुति फिर सत्ता में आ गई।ऐसे में शरद पवार की पार्टी में भी अनिच्छा व अनुत्साह की हालत देखी गई।कुछ नेताओं ने बीजेपी या अजीत पवार की पार्टी में प्रवेश किया।कार्यकर्ताओं में भी संभ्रम फैलने लगा।ऐसी हालत में स्थानीय निकाय चुनाव सामने रहते और ग्रामीण क्षेत्रों में अपना प्रभाव कायम रखने की जरूरत को देखते हुए पार्टी की सुस्ती दूर कर उसमें नए जोश का संचार करने के उद्देश्य से जयंत पाटिल की जगह शशिकांत शिंदे को प्रदेशाध्यक्ष चुना गया।
राकांपा के रोहित पवार जैसे युवा नेता सवाल कर रहे थे कि जयंत पाटिल को कब तक प्रदेशाध्यक्ष पद पर रखा जाएगा? यद्यपि जयंत पाटिल ने कहा कि अध्यक्ष पद छोड़ने का अर्थ यह नहीं कि पार्टी छोड़ दूंगा, लेकिन इस समय की राजनीति देखते हुए कहा नहीं जा सकता कि कौन कहां जाएगा! महाराष्ट्र में शरद पवार व उद्धव ठाकरे बीजेपी की आक्रामक राजनीति का मुकाबला कर रहे हैं।शरद पवार में अपने दम पर 60 विधायकों को निर्वाचित कराने की क्षमता थी लेकिन पार्टी टूटने के बाद उनकी ताकत घट गई।पार्टी प्रदेशाध्यक्ष किसी को भी बनाया जाए, पार्टी का असली चेहरा शरद पवार ही हैं।उनकी 5 दशक से महाराष्ट्र की राजनीति पर पकड़ है।आगामी स्थानीय निकाय चुनाव राकांपा के लिए अस्तित्व की लड़ाई साबित होंगे।शहरी क्षेत्रों में पार्टी की उतनी पकड़ नहीं है परंतु जिला परिषद व नगर पालिका चुनाव में पार्टी सफलता पाने की क्षमता रखती है।
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पिछले कुछ वर्षों में बीजेपी के बढ़ते प्रभाव की वजह से क्षेत्रीय पार्टियां टूटने या समाप्त होने लगी हैं।महाराष्ट्र में क्षेत्रीय पार्टियों का भविष्य क्या होगा, यह बात स्थानीय निकाय चुनावों से सामने आएगी।शरद पवार और उद्धव ठाकरे के सामने यह परीक्षा की घड़ी होगी।महाराष्ट्र में शिवसेना व राकांपा को तोड़ने में बीजेपी कामयाब हुई लेकिन बंगाल में टीएमसी व तमिलनाडु में डीएमके मजबूत बनी हुई हैं।बीजेपी ने बीजद, असम गण परिषद, जदसे आदि का इस्तेमाल कर उन्हें एक तरह से प्रभावहीन बना दिया है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा