
कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का चुनाव पर असर (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: जब निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा कर रिश्तेदारों को उम्मीदवारी दी जाए तो असंतोष भड़केगा ही। राज्य की 29 महापालिकाओं के लिए 15 जनवरी को मतदान होगा तथा कुल 2,869 नगरसेवक निर्वाचित होंगे। अवसरवाद की राजनीति ने प्रगतिशील महाराष्ट्र विकास के लिए सत्ता, गरीबों को न्याय जैसे नारों की मट्टीपलीद कर दी है। जगह-जगह रंग बदलनेवाले गिरगिट नजर आ रहे हैं। नेताओं का अपने कार्यकर्ताओं पर तथा कार्यकर्ताओं का नेताओं पर से विश्वास डगमगाने लगा है। ठाकरे बंधु एकसाथ आ गए लेकिन सीटों की घोषणा अभी तक नहीं की। महानगरपालिका में लंबे समय से प्रशासक राज चल रहा है लेकिन पार्टियों की उम्मीदवारी ही तय नहीं हो पा रही है।
लोगों के गले ऐसी बातें उतारी जा रही हैं जिनका प्रमाण नहीं है कोई कह रहा है कि मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करने का प्रयास करनेवालों को सबक सिखाया जाएगा। कोई संविधान बचाओ का नारा दे रहा है। राज्य सरकार में और विपक्ष में अनेक पार्टियां चुनाव देखकर एक साथ आ गई हैं। जनता को भी समझ में नहीं आ रहा कि ईमानदारी से कौन किसके साथ है। कोई कह रहा है कि विकास का बैकलाग पूरा करेंगे लेकिन वह किसके विकास की बात कर रहे हैं? चुनावी टिकट के लिए इच्छुकों की भारी भीड़ है। एक समय बीजेपी को विचारधारा व अनुशासन की पार्टी समझा जाता था। उसके कार्यकर्ता पार्टी के आदेश को आंख मूंदकर स्वीकार करते थे। अब वैसी स्थिति नहीं है।
इस पार्टी को केवल आधा घंटा शेष रहते एबी फार्म देने का निर्णय लेना पड़ा। इससे समझ में आता है कि बगावत की कितनी आशंका है। कहा जाता है कि नगरसेवक का चुनाव लड़नेवाले अपने क्षेत्र के प्रश्नों को हल कराने का लक्ष्य रखते हैं लेकिन असली मुद्दा सत्ता हासिल करना है। दरअसल सड़कों की खस्ता हालत, जलापूर्ति की समस्या, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कचरा व्यवस्थापन जैसी चुनौतियां बरकरार हैं। महिलाओं का सक्षमीकरण भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। पुराने नगरसेवक खुद के या परिवार के सदस्य के लिए उम्मीदवारी चाहते हैं। लंबे समय से पार्टी की सेवा कर रहे कार्यकर्ता चाहते हैं कि इस बार उन्हें प्रत्याशी बनाया जाए। युवा अपने लिए मौका चाहते हैं ताकि नवीनता व गतिशीलता ला सकें।
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पार्टी यह देखती है कि कौन चुनाव के लिए भरपूर खर्च कर सकता है और किस क्षेत्र में किसकी जीत के आसार प्रबल हैं। टिकट बंटवारे को लेकर सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं में असंतोष देखा जा रहा है। कुछ नेताओं के घर में 2 से 3 टिकट दिए गए हैं। अफरातफरी और बगावत रोकने के लिए कई दल प्रत्याशियों की सूची घोषित करने के बजाय सीधे चयनित उम्मीदवारों को एबी फार्म बांट रही हैं। यदि किसी मजबूत दावेदार को टिकट से वंचित रखा गया तो वह अपनी ही पार्टी के अधिकृत प्रत्याशी के वोट काट सकता है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






