सनातन धर्म को क्या जाने बदतमीज वकील (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई पर भरी अदालत में जूता फेंकनेवाले वकील ने अपनी औकात दिखा दी कि वह कितना घटिया और बदतमीज आदमी है।वकील को अदालत का अंग या कोर्ट आफिसर माना जाता है।उसका दुष्कृत्य न्यायासन को अपमानित करनेवाला है।सराहना करनी होगी सीजेआई गवई के धैर्य और असीम सहनशीलता की जिन्होंने वकील को रिहा करने का आदेश देते हुए वहां मौजूद अन्य वकीलों से कहा कि इस सब पर ध्यान न दें।ये बातें मुझे प्रभावित नहीं करतीं।इनसे मुझे फर्क नहीं पड़ता।इससे परेशान न हों, मैं भी परेशान नहीं हूं।आप अपनी जिरह जारी रखिए।बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने राकेश किशोर नामक उस सिरफिरे वकील को तत्काल निलंबित कर दिया।
अब वह देश की किसी भी अदालत में प्रैक्टिस नहीं कर सकेगा।उस वकील ने बाहर निकलते समय नारा लगाया- ‘सनातन का अपमान नहीं रहेगा हिंदुस्तान’! प्रश्न उठता है क्या वह व्यक्ति सचमुच अनादिकाल से चले आ रहे सनातन धर्म का अर्थ जानता है? सनातन धर्म हर प्रकार से उदारता, सहनशीलता, सर्वसमावेशकता व उच्च मानवीय मूल्यों को लेकर चला है।इसीलिए आजतक कायम है और आगे भी कायम रहेगा।विदेशी आक्रांता भी इसके अस्तित्व को मिटा पाने में विफल रहे और खुद ही मिट गए।यह वही सनातन धर्म है जिसमें भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाए, निषाद को गले लगाया, शिला के समान बन चुकी गौतम मुनि की उपेक्षित पत्नी अहिल्या का उद्धार किया।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के देश में यह वकील अपनी मर्यादा और अनुशासन भूल गया।न्यायपालिका की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने की बेहूदी हरकत कर बैठा! गत 16 सितंबर को न्यायमूर्ति के।विनोद चंद्रन के साथ 2 सदस्यीय पीठ की अध्यक्षता करते हुए सीजेआई गवई ने खजुराहो के जवारी मंदिर में भगवान विष्णु की 7 फुट ऊंची खंडित प्रतिमा के पुनर्निर्माण की मांग को ठुकरा दिया था।तब उन्होंने कहा था कि जाकर भगवान से ही कुछ करने को कहो।अगर आप भगवान विष्णु के भक्त हो तो जाकर प्रार्थना और मेडिटेशन करो।इसके 2 दिनों बाद सीजेआई ने स्पष्ट किया था कि मंदिर की देखभाल की जिम्मेदारी एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग) की है।मेरी टिप्पणी एएसआई के संदर्भ में थी।
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मैं सभी धर्मों में विश्वास करता हूं और सभी धर्मों का सम्मान करता हूं।सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्होंने खुद देखा है कि चीफ जस्टिस सभी धर्मस्थलों का सम्मान करते हुए वहां जाते हैं।उन्होंने देश की सबसे बड़ी अदालत की गरिमा बनाए रखते हुए उदारता का परिचय दिया लेकिन कोई इसे संस्था की कमजोरी न समझे।सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने कहा कि उस वकील की यह ओछी हरकत न्यायिक स्वतंत्रता पर आघात और अनुशासन व गरिमा जैसे संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन है।प्रधानमंत्री मोदी ने भी न्यायमूर्ति गवई द्वारा प्रदर्शित धैर्य की सराहना करते हुए कहा कि इस हमले से हर भारतीय नाराज है।हमारे समाज में ऐसे निंदनीय कृत्यों के लिए कोई जगह नहीं है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा