Lord Ram And Lord Shiv Fight (Source. AI)
Lord Ram And Lord Shiv Fight: रामायण और रामचरितमानस के माध्यम से हम सभी भगवान राम के आदर्श, मर्यादा और धर्मनिष्ठ जीवन से परिचित हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि भगवान राम के जीवन में एक ऐसा भी प्रसंग आया, जब उन्हें अपने आराध्य देव भगवान शिव से युद्ध करना पड़ा। यह कथा जितनी रोचक है, उतनी ही गूढ़ और संदेशपूर्ण भी।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, रावण वध के बाद भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में छोड़ा गया अश्व जहां-जहां जाता, वहां के राजा भगवान राम की अधीनता स्वीकार करते थे। इसी क्रम में यज्ञ का अश्व देवपुर नामक राज्य में पहुंचा, जहां राजा वीरमणि शासन करते थे। राजा वीरमणि भगवान शिव के परम भक्त थे और कठोर तपस्या से उन्होंने शिव से वरदान पाया था कि स्वयं महादेव उनके राज्य की रक्षा करेंगे।
जब अश्व देवपुर पहुंचा तो राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगदन ने उसे बंदी बना लिया। यह सीधा-सीधा अश्वमेघ यज्ञ को चुनौती देना था। ऐसे में युद्ध अवश्यंभावी हो गया। अपने भक्त पर संकट देखकर भगवान शिव ने नंदी, भृंगी और वीरभद्र सहित अपने गणों को युद्ध के लिए भेजा। एक ओर भगवान राम की सेना थी, तो दूसरी ओर शिवगण।
युद्ध के दौरान वीरभद्र ने रामसेना के वीर पुष्कल का वध कर दिया, वहीं भृंगी ने शत्रुघ्न को बंदी बना लिया। जब नंदी के शिवास्त्र से हनुमान जी भी व्याकुल होने लगे, तब उन्होंने भगवान राम का स्मरण किया। अपने भक्तों की पुकार सुनकर भगवान राम लक्ष्मण और भरत के साथ युद्धभूमि में पहुंचे और शिवगणों को परास्त करने लगे।
जब भगवान शिव ने देखा कि उनके गण पराजित हो रहे हैं, तो वे स्वयं युद्ध में उतर आए। इसके बाद भगवान राम और भगवान शिव के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंततः भगवान राम ने पाशुपतास्त्र निकालते हुए कहा, “हे महादेव, यह वही अस्त्र है जिसका वरदान आपने स्वयं मुझे दिया था।” यह सुनकर भगवान शिव प्रसन्न हुए। अस्त्र शिव के हृदय से स्पर्श होते ही उन्होंने युद्ध रोक दिया और श्रीराम से वरदान मांगने को कहा।
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भगवान राम ने वरदान में युद्ध में मारे गए वीरों को जीवनदान देने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने “तथास्तु” कहकर सभी को पुनर्जीवन प्रदान किया। इसके बाद राजा वीरमणि ने यज्ञ का अश्व लौटा दिया और अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण हुआ।
डिस्क्लेमर: यह लेख धार्मिक ग्रंथों, मान्यताओं और पौराणिक कथाओं पर आधारित है।