(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, नौकरी और पारे की गोली एक समान होती है। पता ही नहीं चलता कि कब हाथ से निकल जाए। इंसान की इज्जत तभी तक हैं जब तक उसके पास जॉब है वरना वह अपनी आब चमक खो बैठता है। नौकरी करना और उसे संभालना भी एक आर्ट है।’’ हमने कहा, ‘‘आज आप नौकरी पर चर्चा क्यों कर रहे हैं? नौकरी ऐसी चीज है जो किसी चक्र या साइकिल के समान है। पैसा कमाते रहो और खर्च करते रहो। इसी में उम्र बीतती चली जाती है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, नौकरियों पर संकट छा गया है। रिलायंस से लेकर टाटा तक दिग्गज कंपनियों में जमकर छंटनी हुई है। एक साल में 52,000 युवा अपनी नौकरी खो बैठे। अंबानी की रिलायंस में 38,000 कर्मचारियों को घर बिठा दिया गया। जो बेरोजगार हो जाता है, उसकी हालत डाल से पत्ते जैसी हो जाती है।’’
हमने कहा, ‘‘जिसका दानी-पानी जहां तक बंधा रहता है, वहीं तक नौकरी टिकती है। कोई कंपनी घाटा उठाकर किसी को नहीं पालती पोसती। वह कॉस्टकटिंग या लागत में कमी करने के नाम पर कर्मचारी की वेतन कटौती या छुट्टी कर सकती है। सारी दुनिया में यह होता है।’’
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, रिलायंस रिटेल, टाटा ग्रुप की टाइटन, रेमंड, स्पेंसर जैसी कंपनियों ने भी लोगों को खटाखट नौकरी से निकाल दिया। लगता है कि अब सारे कर्मचारी टेम्परेरी बनकर रह गए हैं। जब व्यक्ति जॉब खो देता है तो उसकी हालत कटी पतंग के समान हो जाती है। उसका रहन-सहन या जीवन स्तर प्रभावित होता है। एक नौकरीपेशा व्यक्ति के पीछे कम से कम 4 लोगों का परिवार रहता है।’’
हमने कहा, ‘‘आप इमोशनल नहीं, प्रैक्टिकल तरीके से सोचिए। कंपनी की आर्थिक हालत के अलावा कर्मचारी की आउटपुट या परफार्मेंस का मुद्दा भी महत्वपूर्ण है। काम में ढीला आदमी कहीं भी नहीं टिक पाता। कारपोरेट अच्छी तनख्वाह देती है तो वैसा रिजल्ट भी चाहती है। टारगेट पूरा करो तो टिको, नहीं तो जाओ। नौकरी खुशामद के भरोसे नहीं, कामकाज में मेहनत और क्षमता के साथ अच्छे व्यवहार बर्ताव की बदौलत टिकती है। नौकरी चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, कर्मचारी को हमेशा प्लान बी तैयार रखना चाहिए। सरकार भी चाहती है कि बेरोजगार सेल्फ एम्प्लायमेंट या स्वरोजगार करें।’’
लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा