इसरो (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: इसरो का वर्कहॉर्स राकेट पीएसएलवी बीच उड़ान में खराब हो गया और लॉन्च मिशन के दौरान सैटेलाइट को उसकी ऑर्बिट में पहुंचाने में असफल रहा। यह दुर्लभ असफलता पिछले 8 वर्षों के दौरान पहली बार हुई है। हालांकि पीएसएलवी-सी61 बिना किसी देरी के लॉन्च हुआ और अपने पहले दो चरणों में उसने मजबूती से काम किया, लेकिन तीसरे चरण में ठोस मोटर के चेंबर में आवश्यक दबाव न बन सका। इस व्यवधान ने 1,696।24 किलोग्राम के ईओएस-09 उपग्रह की प्रगति को रोक दिया, जिसे सभी मौसमों में दिन-रात पृथ्वी के अवलोकन के लिए डिजाइन किया गया था। यह इसरो की 101वीं लॉन्च थी, जिसका उद्देश्य उपग्रह को सूर्य-समकालिक कक्षा (एसएसओ) में पहुंचाना था।
पिछले 32 वर्षों के दौरान 63 उड़ानों में पीएसएलवी 4 बार असफल हुआ है। पहली बार इस राकेट की 20 सितंबर 1993 को पहली उड़ान पीएसएलवी-डीएल असफल रही। दूसरी बार 31 अगस्त 2017 को पीएसएलवी-सी39 आईआरएनएसएस-1एच को हीट शील्ड में खराबी आने के कारण लॉन्च न कर सकी थी। इन दोनों के बीच में एक अन्य मिशन पीएसएलवी-सी1 29 सितंबर 1997 को आंशिक रूप से असफल रहा था, जब चौथे चरण में उचित प्रदर्शन न करने के कारण आईआरएस-1डी को कक्षा में न रखा जा सका था।
पीएसएलवी ने 34 देशों के लिए 345 सैटेलाइट्स लॉन्च की हैं और इसका प्रयोग इसरो के प्रमुख मिशनों में भी किया गया है, जैसे चंद्रयान-1, मार्स ऑर्बिटर मिशन व एस्ट्रोसैट। पीएसएलवी ने अक्टूबर 1994 में अपने पहले सफल मिशन के बाद से अपनी कोर टेक्नोलॉजी में कोई समस्या प्रदर्शित नहीं की है और इसलिए ही इसे इसरो के लॉन्च वाहनों में शामिल किया गया और यह कमर्शियल व अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए प्रमुख व भरोसेमंद वाहन बन गया। लेकिन रविवार की इस ‘दुर्लभ असफलता’ के बाद इसकी नए सिरे से समीक्षा की जाएगी।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पिछले तीन दशक से अधिक के दौरान अपनी 93।7 प्रतिशत सफलता दर के कारण इसरो के वर्कहॉर्स पीएसएलवी की लॉन्च पैड पर जल्द व कामयाब वापसी होगी। पीएसएलवी ने मंगल व चांद तक उपग्रह पहुंचाने में मदद की है। इसने भारत के कमर्शियल स्पेस व्यापार को नई बुलंदियों तक पहुंचाया है। इसकी सफलता दर विश्व में सर्वश्रेष्ठ का मुकाबला करती है या उनसे भी बेहतर है।
स्पेस एक ऐसा क्षेत्र है, जो लापरवाही को बर्दाश्त नहीं करता है और नाकामी कितनी ही दुर्लभ क्यों न हो भारत के लिए धक्का है। पीएसएलवी की बहुमुखी क्षमता (उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा, सूर्य-समकालिक कक्षा व भू-समकालिक कक्षा में पहुंचाना) भारत के महत्वाकांक्षी स्पेस कार्यक्रम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसरो ने पिछले तीन दशक से अधिक के समय में जो मिशन लॉन्च किए हैं, उनमें से 60 प्रतिशत से ज्यादा पीएसएलवी के जरिए अंजाम दिए गए हैं।
पीएसएलवी भरोसेमंद है व इसमें लचीलापन भी है, जिसकी वजह से इसे ग्लोबल पहचान मिली है। इसने लगभग 400 कमर्शियल सैटेलाइट लॉन्च की हैं, जिनमें से अधिकतर विदेशी पेलोड हैं, जिन्हें भारत ने लॉन्च किया है। हालांकि हाल के दिनों में कुछ उपग्रह जीएसएलवी परिवार के रॉकेटों व एसएसएलवी से लॉन्च किए गए हैं, लेकिन ग्लोबल स्पेस बाजार में भारत की पहचान भरोसेमंद पीएसएलवी की वजह से ही बनी है। जरूरी हो जाता है कि पीएसएलवी में जो कमी आई है, उसे तुरंत दूर किया जाए।
रॉकेट के तीसरे चरण में जो खराबी आई उससे ईओएस-09 (रीसैट-1बी) उपग्रह का भी नुकसान हुआ, जो कि स्ट्रेटेजिक एप्लीकेशंस के लिए डिजाइन किया गया था। भारत की रक्षा व्यवस्था के लिए यह बड़ा नुकसान है। भारतीय सशस्त्र बल अब भी ऑपरेशंस के लिए विदेशी कमर्शियल स्पेस एसेट्स पर निर्भर करते हैं, जैसा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी देखा गया।
लेख- शाहिद ए चौधरी के द्वारा