मोदी करते हैं हफ्ते में 100 घंटे काम (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, कुछ लोग अल्कोहलिक होते हैं तो कुछ वर्कोहलिक! दूसरे किस्म के लोगों का काम करने का नशा होता है। वे किसी भी हालत में निष्क्रिय या निठल्ले रह ही नहीं सकते। उनके लिए कर्म ही पूजा है।’ हमने कहा, ‘काम जो भी हो, जैसा भी हो, उसे पूरी लगन और निष्ठा से कुशलतापूर्वक करना चाहिए। कृष्ण ने भी अर्जुन से कहा था कि निष्काम कर्म करो और फल की चिंता मुझ पर छोड़ दो। अपने भक्त के भरण-पोषण या योगक्षेम की व्यवस्था करना मेरी जिम्मेदारी है। इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने कुछ माह पूर्व कहा था कि युवाओं को सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिए।
इसे लेकर काफी बहस छिड़ी थी। कुछ लोगों की राय थी कि राष्ट्रनिर्माण के लिए इतने घंटे काम तो करना ही चाहिए। अन्य का मत था कि यह अव्यावहारिक व तकलीफदेह है। ज्यादा देर काम करने से स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। 10 घंटे कुर्सी पर बैठने से रीढ़ की हड्डी में दर्द, ज्वाइंटपेन होने लगेगा। कंप्यूटर को लगातार ताकने से नजर कमजोर हो जाएगी। बीपी और शुगर जैसी बीमारियां घेर लेंगी। व्यक्ति को घर की जिम्मेदारियों, सामाजिक संपर्क व मनोरंजन के लिए भी समय चाहिए। इंसान और मशीन में फर्क होता है।’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या और नारायण मूर्ति मुंबई से बंगलुरू विमान प्रवास कर रहे थे। आपसी बातचीत में तेजस्वी ने कहा वह उनकी सलाह के मुताबिक 70 घंटे काम करने का प्रयत्न कर रहे हैं। इस पर नारायण मूर्ति ने कहा कि मैं हफ्ते में 100 घंटे काम करनेवाले एकमेव व्यक्ति को जानता हूं, वह हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।’ हमने कहा, ‘हर व्यक्ति का समर्पण भाव और एनर्जी लेवल अलग-अलग होता है। मोदी सुपर ह्यूमन हो सकते हैं। कोई वकील, डाक्टर, इंजीनियर या प्रोफेसर इतने घंटे काम नहीं कर सकता।
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श्रमिक वर्ग भी रोज 8 या 9 घंटे काम करने की क्षमता रखता है। यह सोचना होगा कि काम के लंबे घंटे महत्वपूर्ण हैं या काम की क्वालिटी? कर्मठ होना अच्छी बात है लेकिन कितने ही लोग कामचोर होते हैं। व्यक्ति को हमेशा व्यस्त रहना चाहिए क्योंकि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। कर्मठ और कुशल लोग ही समाज और देश को आगे बढ़ाते हैं। जापान की मिसाल सामने है।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा