(डिजाइन फोटो)
पेरिस पैरालंपिक्स में भारत के खिलाड़ियों ने पूरी क्षमता, जोश और समर्पण के साथ बहुत शानदार प्रदर्शन किया और 29 पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया। यह अब तक की सबसे बढि़या प्रस्तुति रही जिसमें खिलाड़ियों ने 7 स्वर्ण, 9 रजत और 13 कांस्य पदक हासिल किए। मेडल जीतनेवालों में 10 महिला खिलाड़ियों का समावेश रहा। हर पैरालंपिक खिलाड़ी के संघर्ष की अपनी कहानी है कि कैसे उसने विपरीत परिस्थितियों में भी हौसला कायम रखा।
अवनी लेखारा पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने शूटिंग में 2 पैरालंपिक गोल्ड मेडल जीते। सुमित अंतिल ने अपनी टोक्यो की उपलब्धि को पेरिस में भी कायम रखा और पुरुष भालाफेंक (एफ 64) में स्वर्णपदक जीता। सिर्फ 4 फुट 4 इंच के नवदीप सिंह ने 47।32 मीटर दूरी तक भाला फेंका। प्रीति पाल ने 100 और 200 मीटर की फर्राटा दौड़ में 2 ब्रांज मेडल जीते।
पैराबैडमिंटन में नीतेशकुमार ने गोल्ड व भारतीय महिला खिलाड़ियों ने 4 पदक जीते। पेरिस पैरालंपिक्स ने दिखा दिया कि किस तरह किसी देश की क्रीड़ा क्षेत्र में किस्मत बदल सकती है। लंदन के 2012 और रियो के 2016 पैरालंपिक में भारत ने क्रमश: 1 और 4 मेडल जीते थे। केंद्र सरकार और कारपोरेट द्वारा संसाधन प्रदान किए जाने से खिलाड़ियों को सुविधाएं मिली और उनका खेल चमक उठा।
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भारत ने पेरिस पैरालंपिक के 22 में से 12 स्पोर्ट श्रेणियों में भाग लिया। इसलिए आगे चलकर तरक्की की और भी गुंजाइश है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे पैरा एथलीट ने अपनी दिव्यांगता के बावजूद दृढ़ मनोबल के साथ काफी संघर्ष किया और इस गौरवशाली मुकाम को हासिल किया। दिव्यांगता अधिकार कानून 2016 से ऐसे खिलाड़ियों की जिंदगी में काफी फर्क आने की संभावना बनी थी लेकिन केंद्र ने इस अधिनियम में दर्शाई गई योजनाओं के बजट में कटौती कर दी।
अब पैरालंपिक में खिलाड़ियों द्वारा अर्जित उपलब्धि के बाद इन योजनाओं में पर्याप्त वित्तपूर्ति की जानी चाहिए ताकि किसी होनहार खिलाड़ी का हौसला न टूटने पाए। विगत वर्षों में स्पोर्टस अथारिटी आफ इंडिया ने कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के सहयोग से पैरास्पोर्ट को बढ़ावा देने का काम किया।
इसमें जेएसडब्ल्यू स्पोर्टस, इंडियन आइल तथा अन्य की ओर से मदद मिली। यह अत्यंत गौरवपूर्ण है कि अनेक स्पोर्ट इवेंट में भारतीय खिलाड़ियों ने स्विजरलैंड, दक्षिण कोरिया, बेल्जियम व अर्जेंटीना को पीछे छोड़ दिया। हमारे अनेक खिलाड़ी सामान्य परिवारों से आए और अनेक बाधाएं पार कर मेहनत और आत्मविश्वास से इस मुकाम पर पहुंचे।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा