डिजाइन फोटो
लेबनान में पेजर और वाकी-टाकी के विस्फोटों से सभी सन्न रह गए। मोसाद ने अपनी इस उच्च तकनीकी ताकत का इस्तेमाल हिजबुल्लाह की कमर तोड़ने के लिए किया, लेकिन इन सामान्य इलेक्ट्रोनिक उपकरणों को खतरनाक बमों की तरह इस्तेमाल करके इजरायल ने दुनियाभर के आतंकियों को दहशत का वह रास्ता दिखा दिया है कि अब ये छोटी और रोजमर्रा की जिंदगी में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रोनिक डिवाइसेस को तरह- तरह के बमों के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
हमारे यहां तो आसानी से सबसे खतरनाक बम बनाए जाने वाले मोबाइल फोनों का इस्तेमाल ही 1 अरब से ज्यादा होता है। देश में 1.25 अरब इंटरनेट के ही यूजर हैं। कहा जा रहा है कि लेबनान में जो पेजर फटे उनमें बहुत मामूली मात्रा में पीईटीएन विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया था।
अगर लेबनान में महज कुछ हजार आयातित इलेक्ट्रोनिक डिवाइसेस चेक नहीं की जा सकीं तो सोचिये भारत में यह कैसे संभव है जहां हर दिन औसतन 5 लाख विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस आयात के जरिये विभिन्न देशों से आती हैं। भारत में संबंधित ऑथरिटी ही स्वीकारती हैं कि अपने यहां आ रहीं 90% इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस की चेकिंग ही नहीं होती, तो सोचिये अपने यहां कितनी खतरनाक स्थिति हो सकती है।
पिछले कुछ महीनों में जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ बढ़ी है। अब धीरे- धीरे इन सच्चाइयों का खुलासा सामने आ रहा है कि कैसे सुरक्षाबलों और एजेंसियों को चकमा देने के लिए आतंकी यहां भी टेक्नोलॉजी और हाइब्रिड वॉरफेयर का सहारा ले रहे हैं।
यह भी पढ़ें- श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव, दांव पर लगी है भारतीय विदेशनीति
इंटेलिजेंस एजेंसियों को जांच से पता चला है कि पाकिस्तान से घुसपैठ करके आए आतंकी इन दिनों धडल्ले से अल्पाइन मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिन्हें आमतौर पर पहाड़ों पर ट्रैकर्स यूज करते हैं। लेबनान की तरह भारत में भी इन साधारण इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस से टारगेटेड अटैक किए जा सकते हैं?
सवाल है कि अगर इस तरह की आशंकाओं के तहत भारत में भी आतंकी अटैक की साजिश रची जाती है, तो हम इसे समय रहते कैसे नियंत्रित कर सकते हैं? अचानक यह आशंका इसलिए भी है क्योंकि हम तो 60 फीसदी से ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक और टेलीकॉम आइटम चीन और उसके ही एक विस्तारित हिस्से हांगकांग से खरीदते हैं।
यही नहीं, हम तो अपनी सारी की सारी एटीएम मशीने, टरबाइनें यहां तक कि हमारे महानगरों की शान बनी मेट्रो ट्रेन पूरी की पूरी या इसके ज्यादातर हिस्से भी चीन सहित विभिन्न देशों से खरीदते हैं तो हमारे यहां स्माल डिवाइसेस से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर के आधार का भी भारी भरकम बमों की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल लेबनान में विस्फोट की इन घटनाओं ने एक झटके में पूरी दुनिया को खतरे के घेरे में खड़ा कर दिया है।
बिना देरी किये भारत आने वाले सभी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस की 100 फीसदी स्कैनिंग सुनिश्चित करनी होंगी चाहे जितना खर्च बढे और चाहे जितना समय लगे। अगर सुरक्षित रहना है तो 90% डिवाइसेस चेक नहीं किये जाने का अब जोखिम नहीं लिया जा सकता। साथ ही मोबाइल, लैपटॉप और स्मार्टवॉच जैसी हर उस चीज के इस्तेमाल की एक स्मार्ट गाइडलाइन तय करनी होगी और हर नागरिक को उसकी ट्रेनिंग जरूरी करनी होगी। क्योंकि ऐसी सभी डिवाइसेस का बम की तरह इस्तेमाल हो सकता है, जिसमें बैटरी लगी है और जिसे इंटरनेट के जरिये ऑपरेट करना संभव हो।
इसलिए विदेश से आ रहे हर डिवाइसेस की मॉनिटरिंग हर हाल में बहुत जरूरी है। याद रखिये हाइब्रिड वॉरफेयर भारत के लिए लेबनान से कहीं ज्यादा बड़ा खतरा है। इसलिए लेबनान से सबक लेते हुए हमें इस तरह अलर्ट रहना होगा जैसे ये विस्फोट हमारे यहां ही हुए हों। क्योंकि हाइब्रिड और एसिमिट्रिक वॉरफेयर परंपरागत तरीके से लड़े जाने वाले युद्ध से कहीं ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि ऐसे युद्ध में देश का हर नागरिक फौजी की भूमिका में होता है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा