इस लत से छुटकारा कैसे मिले, गुटखा बिना चैन कहां रे! (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, देश की अर्थव्यवस्था में गुटखा अपना खास महत्व रखता है।पानठेले वाला रबर के पट्टे पर देर तक परिश्रमपूर्वक तम्बाकू को मलता है और छानकर खैनी या गुटखा तैयार करता है।उसे ग्राहक पालिथीन की पन्नी में ले जाता है।जिन्हें इसकी लत है, वह रोज 50 या 100 रुपए का गुटखा खा जाते हैं।इस तरह एक ग्राहक साल भर में 36,500 रुपए का गुटखा चबा जाता है।इस हिसाब से भारत के शहरों और गांवों में गुटखा का करोड़ों रुपए का कारोबार है।महाराष्ट्र में प्रतिबंध होने के बावजूद ट्रैवल बसों से या अन्य तरीके मध्यप्रदेश व पड़ोसी राज्यों से गुटखे की तस्करी होती है.’
हमने कहा, ‘गुटखा सेवन करनेवाला वैधानिक चेतावनी की अनदेखी करते हुए अपना शौक जारी रखता है।माउथ कैंसर का खतरा उसे जरा भी नहीं डराता।गुटखा खानेवाला व्यक्ति मौन व्रत धारण करता है।जब उसका मुंह पीक से भरा हो तो उसे ब्रम्हानंद का अनुभव होता है।आप उससे कितनी भी बात करो वह सिर्फ हूं-हूं करेगा, कुछ बोलेगा नहीं.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री आरआर उर्फ आबा पाटिल गुटखे की वजह से कैंसर पीड़ित हो अपनी जान गंवा बैठे।शरद पवार का मुंह कैसा हो गया है, आपने देखा ही होगा।इतने पर भी लोग नहीं सुधरते.’
पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, एक बार कोई विदेशी भारत आया था तो वह लोगों को पान-तम्बाकू की पीक थूकते देखकर उसे खून समझ बैठा और घबरा गया कि यहां टीबी फैला हुआ है।वह तुरंत अपने देश वापस चला गया।हमारे यहां पान-तम्बाकू और गुटखे की वजह से ही पीकदान का चलन है।लखनऊ के नवाब या रईसों के पास उनका नौकर पीकदान या उगालदान लेकर खड़ा रहता था जिसमें वह पान तम्बाकू की पीक थूकते थे।अब आप कोर्ट-कचहरी, नगरपालिका या किसी भी सरकारी कार्यालय में जाइए तो वहां की सीढि़यां पान की पिचकारी से रंगी हुई मिलेगी।यूपी के लखनऊ-कानपुर में तो एक भी मैरिज हाल ऐसा नहीं मिलेगा जहां खंभे और दीवारों पर पान का पीक नहीं थूका गया हो।गुटखा खानेवाले अपने आफिस के इटैलियन मार्बल के चमचमाते कीमती फर्श को भी पीक थूक-थूक कर लाल कर देते हैं।वेस्टपेपर बास्केट को भी पीकदान के समान इस्तेमाल करते हैं।
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यह नहीं सोचते कि कोई इंसान ही इसे साफ करेगा।पानठेले वाले के दिमाग में अपने ग्राहक का केवायसी दर्ज होता है।उसने एक बार सुन लिया कि 120, बोल्डर सुपारी और किवाम डालो तो हमेशा याद रखता है।वह पहचान के ग्राहक को ही गुटखा देता है जो उसकी दिनभर की खुराक रहता है।ऑफिस चाहे जितना जुर्माना लगाए या हरजाना वसूल करे, गुटखाप्रेमी अपनी लत कभी नहीं छोड़ेगा और गंदगी फैलाता रहेगा।उसे दूसरों के स्वास्थ्य या हाइजिन से कोई मतलब नहीं है।उसे एक सप्ताह के लिए दुबई या सिंगापुर भेजो तो वहां थूकने की हिम्मत नहीं कर पाएगा.’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा