ट्रंप ने कर्मचारियों का नाश्ता पानी किया बंद (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, अब अमेरिका में सरकारी कर्मचारियों को आफिस में नाश्ता, काफी, लंच कुछ नहीं मिलेगा। सरकारी खर्च में कटौती कर अमेरिका को महान बनाने का सपना देखने वाले प्रेसीडेंट ट्रंप ने यह प्रथा बंद करने की ठान ली है।’ हमने कहा, ‘तब तो कर्मचारी भी ढंग से काम नहीं कर पाएंगे क्योंकि कहावत है- भूखे भजन न होई गोपाला! जब पेट में कैलोरीज नहीं जाएंगी, न्यूट्रीशन नहीं मिलेगा तो कर्मचारी में काम करने की ऊर्जा ही नहीं रहेगी।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, इसका इलाज है।
हमारे देश में स्कूली बच्चों से लेकर आफिस जानेवाले कर्मचारियों तक, सभी अपने घर से टिफिन लेकर आते हैं। अमेरिकी वर्कर्स भी ऐसा कर सकते हैं।’ हमने कहा, ‘घर में रोज घंटों खाना बनाने का रिवाज भारत में है। अमेरिका में लोग इतना समय बर्बाद नहीं करते। वो केक, पेस्ट्री, टोस्ट, बरीटो, पीजा, कुकीज, चीटोज, फ्रीटोज, एपल पाई, फुट लांग बन वगैरह खाते रहते हैं। वे कार से जाते-जाते किसी रेस्टोरेंट से टेक अवे का पार्सल ले लेते हैं। बचा हुआ खाना फ्रिज से निकालकर माइक्रोवेव में गर्म कर लेते हैं। दाल, चावल, रोटी, सब्जी बनाने का रिवाज सिर्फ भारतीयों में है।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, ट्रंप प्रशासन के फैसले से गूगल, मेटा, एपल, लिंक्ड इन, जेपी मार्गन, गोल्डमैन साक्स जैसी कंपनियां प्रभावित होगी जो अपने कर्मचारियों को नाश्ता, भोजन की सुविधा देती हैं। उन्हें मिलनेवाली टैक्स रियायत बंद कर दी जाएगी।’
हमने कहा, ‘अमेरिका वर्कर क्या च्युइंग गम चबाते रहेंगे? वह ट्रंप से कह सकते हैं- पीठ पर मारो, पेट पर मत मारो! ट्रंप को प्रधानमंत्री मोदी से अन्नदान की सीख लेनी चाहिए। मोदी सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज मुहैया कराती है। हमारे मंदिरों में भंडारा लगता है। गुरूद्वारा में लंगर खुला रहता है जबकि ट्रंप नाश्ता देने में भी कंजूसी कर रहे हैं।’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, हो सकता है कि वह अपने कर्मचारियों की ओवर ईटिंग से परेशान हों। इनको डायटिंग कराई जाएगी तो मोटापा कम होगा और वह ज्यादा चुस्ती से काम करने लगेंगे। हमारे यहां भी कारपोरेट कल्चर है।
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बड़ी कंपनियों में अल्प दर पर नाश्ता, चाय, काफी और लंच उपलब्ध रहता है। ट्रंप को कोई बताए कि अन्न पूर्ण ब्रम्ह है। अन्नदान सबसे बड़ा दान है। भूखे को खाना खिलाना पुण्य का काम है। यदि ट्रंप के आदेश से रुकावट आती है तो अमेरिका के कर्मी भी भारत के सरकारी कर्मचारियों के समान लोगों से काम करने के बदले चाय-पानी के पैसे मांगना शुरू कर दें!’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा