फिलिप एकरमैन (डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, अंधविश्वास विश्वव्यापी है। इससे पढ़े-लिखे विदेशी भी नहीं बच पाते। दिल्ली में जर्मन राजदूत फिलिप एकरमैन ने बीएमडब्ल्यू की नई इले्ट्रिरक लग्जरी कार खरीदी। इस गाड़ी को किसी की नजर न लगे इसलिए उसके बोनेट पर पहले तो अपने देश का झंडा लगाया और फिर काले धागे से नींबू-मिर्च बांध लिए। राजदूत भी जर्मन और कार भी जर्मनी मेड। उन्हें ऐसा करने की क्या आवश्यकता थी?’’
हमने कहा, ‘‘जिस देश में रहो, वहां के रीतिरिवाजों का प्रभाव पड़ता ही है। भारत के नींबू-मिर्च बांधनेवाले अंधविश्वास से जर्मन राजदूत भी जुड़ गए। हमारे देश में अधिकांश दूकानदार रोज नींबू और हरी मिर्च खरीदते हैं ताकि दूकान के द्वार पर लटका सकें। इस अंधविश्वास की बदौलत नींबू-मिर्च की काफी बिक्री होती है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, धंधे में रिस्क रहता है। किसी जलनखोर की काली नजर से नुकसान न हो, इसलिए यह टोटका किया जाता है। आपने ट्रकों के पिछले भाग पर भी लिखा देखा होगा- बुरी नजरवाले तेरा मुंह काला!’’
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पड़ोसी ने कहा, ‘‘जर्मन राजदूत के इस कदम से सीख लेते हुए हर कार डीलर को पहले ही नींबू-मिर्च लटकाकर कार की डिलीवरी देनी चाहिए। बीएमडब्ल्यू कंपनी को तुरंत यह संदेश जाना चाहिए। जर्मनी के लोग पहले भी भारत से बहुत कुछ सीखते रहे हैं। मैक्स मूलर नामक जर्मन विद्वान ने संस्कृत सीखकर वेदों का जर्मन में अनुवाद किया था।’’
हमने कहा, ‘‘संस्कृत सीखने और अंधविश्वासी होने में जमीनी-आसमान का अंतर है। अंधविश्वास या सुपरस्टीशन छूत की बीमारी के समान होता है। जर्मन राजदूत की देखादेखी दिल्ली की चाणक्यपुरी में रहनेवाले अन्य विदेशी राजदूत भी अपनी गाड़ी में नींबू-मिर्च लटकाने लगेंगे।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, पश्चिमी देशों के लोग भी अंधविश्वासी होते हैं। यूरोप-अमेरिका के होटलों में कोई भी व्यक्ति 13 नंबर के कमरे में ठहरना पसंद नहीं करता। वह इसे अशुभ मानता है। इसलिए होटल मालिक आमतौर पर 13 नंबर के कमरे को गोदाम बना देते हैं। जर्मन राजदूत को और भी भारतीय अंधविश्वासों को अपनाना चाहिए जैसे कि मुहूर्त देखकर कोई शुभ काम करना, घर से निकलते समय कोई छींक दे या बिल्ली रास्ता काट जाए तो रुक जाना। चम्मच भर दही खाकर परीक्षा या नौकरी के इंटरव्यू के लिए जाना, शनिवार को लोहा या नए कपड़े नहीं खरीदना। ऐसे अंधविश्वासों पर पूरी किताब लिखी जा सकती है। दरअसल अंधविश्वास दिमागी गुलामी की निशानी है।’’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा