नवभारत संपादकीय (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: विधानमंडल के बजट सत्र का समापन हो गया लेकिन इससे राज्य की जनता को क्या मिला? महायुति सरकार का इतना बहुमत है कि वह जनहित में कोई भी निर्णय आसानी से ले सकती थी। सरकार ने पहले बढ़-चढ़कर चाहे जितनी भी घोषणाएं की हों लेकिन उसके खजाने में उन्हें पूरा करने के लिए धन नहीं है। यही वजह है कि बजट सत्र में कोई नई घोषणा नहीं की गई।
यद्यपि विपक्ष के पास संख्याबल नहीं है लेकिन जनता के मुद्दे रखने की जवाबदारी तो उस पर है। कृषि उपज के भाव, बिजली से सिंचाई तक के प्रश्न, राज्य के शहरों व ग्रामीण क्षेत्र की ज्वलंत समस्याओं पर विशेष चर्चा नहीं हुई। केवल प्रवेशद्वार की सीढि़यों पर फलक-बैनर दिखाने, सत्तापक्ष और विपक्ष द्वारा एक-दूसरे की आलोचना करने के अलावा कुछ नहीं हुआ।
कानून-व्यवस्था में गिरावट के लिए गृह विभाग को जिम्मेदार ठहराते हुए विपक्ष आक्रामक रवैया अपना सकता था लेकिन उसने जोर नहीं दिखाया। अंतिम सप्ताह के प्रस्ताव पर बोलते हुए मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा कि विपक्ष को इस पर तैयारी के साथ अपनी बात रखनी चाहिए थी। जो आंकड़े सुनील प्रभु ने दिए वहीं आंकड़े नाना पटोले के भाषण में भी थे।
विपक्ष चाहता तो विभिन्न कोणों से सरकार की आलोचना कर सकता था। विधानसभा और विधानपरिषद दोनों में विपक्ष की तुलना में बीजेपी के विधायक अधिक आक्रामक नजर आए ठाणे के कोस्टल रोड मुद्दे पर अपने ही मंत्री को विधानपरिषद में प्रवीण दरेकर, प्रसाद लाड व निरंजन डावखरे ने आड़े हाथ लिया।
मुंबई की सड़कों की बेहाली का मुद्दा विधानसभा में अतुल भातखलकर व अमित साटम ने उठाया। उन्होंने दिखा दिया कि सत्ता पक्ष के विधायक भी जनहित का मुद्दा जोर-शोर से उठा सकते हैं। बीजेपी के सुधीर मुनगंटीवार ने कई बार अपनी ही पार्टी के मंत्रियों से टकराव मोल लिया।
इस सत्र में उद्धव ठाकरे अधिकांश दिनों तक विधान भवन में दिखाई दिए किंतु उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में कोई चर्चा शुरू नहीं की। विपक्ष यही कह सकता है कि उसकी वजह से धनंजय मुंडे को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा लेकिन मुख्यमंत्री फडणवीस ने पहले ही दिन मुंडे का इस्तीफा लेकर विपक्ष के हाथ से मुद्दा छीन लिया।
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विपक्ष मस्साजोग प्रकरण को अलग से उठाने की बजाय यह मुद्दा उठा सकता था कि महाराष्ट्र के अनेक छोटे व मध्यम शहरों में राजनीतिक छत्रछाया में गुंडागर्दी पनप रही है। कुल 16 दिन चले इस सत्र में औरंगजेब, नागपुर दंगा, दिशा सालियान, कुणाल कामरा आदि मुद्दों पर शोरगुल मचा कर सदन का कामकाज ठप करने में सत्ता पक्ष के लोगों का ही हाथ था। वस्तुत: सत्तापक्ष को चाहिए कि वह कामकाज शांति से शुरू रखने की जिम्मेदारी ले।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा