
(डिजाइन फोटो)
पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, मध्य प्रदेश के मंदसौर में सूखे से परेशान लोगों ने बारिश लाने के लिए एक दिलचस्प टोटका किया। उन्होंने मनौती मांगी थी कि यदि वर्षा होगी तो गधों को गुलाब जामुन खिलाएंगे। भगवान ने उनकी सुन ली। बरसात होने पर उन्होंने अपनी मनौती पूरी करने के लिए एक बड़े से बर्तन में ढेर सारे गुलाब जामुन रखकर 2 गधों को खिला दिए ! सूखी घास खानेवाले गधे भी मजे से स्वादिष्ट गुलाब जामुन चट कर गए।”
हमने कहा, “अब तक लोग कहते थे- घोड़ों को नहीं मिलती घास और गधे खा रहे च्यवनप्राश ! फिलहाल कहना होगा- बारिश करवाने की चढ़ी धुन तो गधों को खिलाए गुलाब जामुन!”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, गधे का अवमूल्यन मत कीजिए। वह एक मेहनती जानवर है। उस पर लोग कितना भी बोझ डाल दें, वह शिकायत नहीं करता। पाकिस्तान की इकोनॉमी गधे पर चलती है। पाकिस्तानी गधे चीन को निर्यात किए जाते हैं। चीन के चमगादड़ खानेवाले सर्वभक्षी लोग गधे को मारकर उसकी खाल से जिलेटिन निकालते और दवाइयां बनाते हैं। अपने देहात में धोबी कपड़ों का गट्ठा गधे की पीठ पर लादकर घाट ले जाता है। गधे ईंट व रेत की ढुलाई भी करते हैं। किसी दुष्कर्मी को सजा देने के लिए मुंह काला कर जूते की माला पहनाकर गधे पर बैठाकर घुमाया जाता है। अब टीचर बच्चों को डांट भी नहीं सकते। पुराने मास्टर किसी बच्चे पर गुस्सा आने पर कहते थे- गधा कहीं का!”
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हमने कहा, “जिस मंदसौर में गधों को गुलाब जामुन खिलाए गए, वह मंदोदरी का मायका या रावण का ससुराल माना जाता था।”
पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, चर्चा का केंद्र गधा ही क्यों रहता है, घोड़ा क्यों नहीं? आपने फिल्म ‘मासूम’ का मजेदार बालगीत सुना होगा- लकड़ी की काठी, काठी पे घोड़ा, घोड़े की दुम पे जो मारा हथोड़ा, दौड़ा-दौड़ा घोड़ा दुम दबाकर दौड़ा! इतिहास में महाराणा प्रताप का वफादार घोड़ा चेतक मशहूर है। घोड़ों की रेस होती है। पोलो जैसा खेल घोड़े पर बैठकर खेला जाता है। ओलंपिक में भी घुड़सवारी की प्रतियोगिता होगी। पहले घोड़े सवारी और युद्ध में काम आते थे। गधा कभी घोड़े का मुकाबला नहीं कर सकता। घोड़ा हमेशा शानदार र होता है जबकि गधा पुअर डंकी होता है।” लेख चंद्रमोहन द्विवेदी द्वारा






