गांधी-बापू से नहीं कोई काम मनरेगा अब राम के नाम (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, मन की बात बोलनेवाले मोदी को मनरेगा पसंद नहीं आई।उनकी सरकार ने विचार किया कि बेचारे गांव के किसान-मजदूर कब तक मनरेगा की पुरानी राग-रागिनी सुनते रहेंगे, इसलिए ट्यून बदली जाए।इसलिए पहले तो इसे पीबी यानी पूज्य बापू का नाम दिया लेकिन 2 दिन में ही सरकार को यह नाम भी नहीं जंचा।उसे लगा कि महात्मा गांधी या बापू की तस्वीर नोटों पर ही अच्छी है।
किसान-मजदूर की जिंदगी हमेशा राम भरोसे रहती है।कभी वह आत्महत्या करता है तो कभी किडनी बेचता है।उसे समझाया जाना चाहिए कि जैसी हालत में हो उसी में संतुष्ट रहो।जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां! जाही विधि राखे राम ताही विधि रहिए! इसलिए राम नाम का स्मरण कर सरकार ने योजना का नया नाम वीबी-जी राम जी रख दिया।इसका फुल फार्म है- विकसित भारत रोजगार एवं आजीविका मिशन ग्रामीण।इतना लंबा नाम कौन याद रखेगा इसलिए किसान-मजदूर इसे जीराम जी कह सकते हैं।हिंदी भाषी प्रदेशों में लोग सुबह उठकर या किसी से मुलाकात होने पर जयरामजी बोलते हैं।अब वह इस योजना का नाम लेते हुए जी-राम-जी बोलेंगे.’
हमने कहा, ‘बापू नाम में कौन सी दिक्कत थी? मोहम्मद रफी ने गाया था- सुनो-सुनो ऐ दुनियावालो बापू की ये अमर कहानी, वो बापू जो पूज्य था इतना जितना गंगा मां का पानी।कवि पं।प्रदीप ने भी गाया था- देखो कभी बरबाद न होवे ये बगीचा जिसको हृदय के खून से बापू ने है सींचा!’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, सरकार को लगा होगा कि इस समय जेल में भी एक तथाकथित संत आजीवन कारावास की सजा भोग रहे हैं जिन्हें उनके अनुयायी ‘बापू’ कहते हैं इसलिए कुछ अलग नाम रखना चाहिए।
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महात्मा गांधी ने भी प्राण त्यागते समय हे राम कहा था इसलिए योजना में राम का नाम डाल देना चाहिए।किसान को 6,000 रुपए हर साल देकर सरकार राम-राम कर लेती है।लाडली बहन हो सकती है लेकिन लाडला किसान नहीं हो सकता।कर्ज के बोझ, फसलों की बर्बादी, उचित दाम नहीं मिलने से जब किसान का दिल टूट जाता है तो उसका राम नाम सत्य हो जाता है।’
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा