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Delhi Politics: कुर्सी पर आतिशी मार्लेना, पावर में अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी

केजरीवाल का कहना है कि वह अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उसी समय बैठेंगे जब दिल्ली के मतदाता विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को जिताकर उन्हें ईमानदारी का सर्टिफिकेट दे देंगे। दिल्ली में अगले साल फरवरी तक विधानसभा चुनाव संभावित हैं। दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी को हाई-प्रोफाइल जॉब अवश्य मिला है, लेकिन अति सीमित अवधि के लिए।

  • By मृणाल पाठक
Updated On: Sep 19, 2024 | 01:10 PM

(डिजाइन फोटो)

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जैसा कि अनुमान था, आम आदमी पार्टी के विधायक दल ने सर्वसम्मति से 43 वर्षीय आतिशी को दिल्ली के आठवें मुख्यमंत्री के रूप में चुना। सुषमा स्वराज व शीला दीक्षित के बाद आतिशी दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री हैं। शराब घोटाले में जमानत पर रिहा होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की थी और 17 सितंबर को अपना त्यागपत्र एलजी वीके सक्सेना को सौंप भी दिया।

केजरीवाल का कहना है कि वह अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उसी समय बैठेंगे जब दिल्ली के मतदाता विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी को जिताकर उन्हें ईमानदारी का सर्टिफिकेट दे देंगे। दिल्ली में अगले साल फरवरी तक विधानसभा चुनाव संभावित हैं। दिल्ली की नई मुख्यमंत्री आतिशी को हाई-प्रोफाइल जॉब अवश्य मिला है, लेकिन अति सीमित अवधि के लिए।

अगर आप दिल्ली चुनाव जीत जाती है, तो केजरीवाल ही मुख्यमंत्री की कुर्सी में होंगे। आतिशी केजरीवाल को अपना राजनीतिक गुरु मानती हैं। इसलिए केजरीवाल को सलाखों के पीछे से बाहर लाने के लिए वह ही सबसे अधिक संघर्ष करती दिखाई दे रही थीं। केजरीवाल भी आतिशी पर बहुत अधिक विश्वास करते हैं। आतिशी की छवि साफ सुथरी है।

ऑक्सफोर्ड से शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद उन्होंने किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में मोटे वेतन का जॉब नहीं किया बल्कि मध्य प्रदेश के एक गांव में जाकर शिक्षा व आर्गेनिक फार्मिंग को प्रोत्साहित किया। उनके पति प्रवीण सिंह तो अभी तक इसी समाज सेवा में लगे हुए हैं और इतना लो-प्रोफाइल रहते हैं कि सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीर मुश्किल से ही देखने को मिलती है।

आतिशी की इसी राजनीतिक ईमानदारी के चलते गुरु को शिष्या पर भरोसा है कि समय आने पर सत्ता हस्तांतरण में कोई रुकावट नहीं आयेगी यानी झारखंड जैसी स्थिति उत्पन्न नहीं होगी। इसलिए गोपाल राय, सौरभ भरद्वाज आदि की दावेदारी को एक किनारे करते हुए आतिशी का चयन बतौर मुख्यमंत्री किया गया।

यह भी पढ़ें- जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं में उत्साह, नागरिकों को अपनी चुनी हुई सरकार बनाने की चाह

लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हत्या

भारत की मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों में परंपरा यह है कि एक या दो शीर्ष नेता ही मुख्यमंत्रियों का चयन करते हैं। आतिशी के संदर्भ में भी इसी का पालन किया गया है। इस प्रकार के चयन से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हत्या हो जाती है। साथ ही इसकी वजह से प्रशासनिक गुणवत्ता व लोकतांत्रिक स्वास्थ्य प्रभावित होते हैं। इसका संबंध व्यवस्था की अन्य खामियों से भी है जैसे पारिवारिक शासन व अपराधीकरण।

जब किसी पार्टी पर एक या दो नेताओं का कब्जा हो जाता है, तो दीर्घकाल में उस पार्टी का स्ट्रक्चर तहस-नहस हो जाता है। देश की किसी भी पार्टी को देख लीजिये, सभी का यही हाल है। बेहतर हो कि एक ऐसा कानून बनाया जाए कि पार्टियों के भीतर भी लोकतंत्र अनिवार्य हो। इस्तीफे को नाटकीय अंदाज में लहराते हुए केजरीवाल ने प्रदर्शित किया कि जेल की रोटी ने उनके हौसले को पस्त नहीं किया है।

पिछले कुछ माह आप कार्यकर्ताओं पर भले ही भारी पड़े हों, लेकिन केजरीवाल उन्हें चुनावी जंग के लिए तैयार कर रहे हैं, उनमें ऊर्जा डाल रहे हैं और वह भी इस स्पष्ट संकेत के साथ कि ‘हाई कमांड’ के हाथों में ही चार्ज रहेगा, भले ही आतिशी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठी हों।

नीतीश-हेमंत की बात अलग

हालांकि नितीश कुमार व हेमंत सोरेन का अपने तथाकथित विश्वासपात्रों से मुख्यमंत्री पद वापस पाने का अनुभव तल्ख रहा है। लेकिन केजरीवाल की स्थिति उनसे काफी भिन्न है। आतिशी से किसी भी प्रकार के विद्रोह की उम्मीद ही फिजूल है। वह राजनीति में अपवाद हैं, बिना किसी लालच के जनसेवा के लिए समर्पित हैं।

यह भी पढ़ें- केजरीवाल की जगह दिल्ली का अगला CM कौन? फिजाओं में घुला सवाल, जवाब देने वाले मौन!

केजरीवाल ने राजनीतिक प्रभाव भ्रष्टाचार रोधी प्लेटफार्म की बदौलत हासिल किया है और आप की पहचान व आकर्षण का मुख्य कारण आज भी यही है। इसलिए केजरीवाल की यह घोषणा सधी हुई राजनीतिक रणनीति है कि मतदाताओं से ईमानदारी का सर्टिफिकेट मिलने पर ही वह मुख्यमंत्री ऑफिस में लौटेंगे। उनकी यह रणनीति ठोस साबित होती है या पीआर स्टंट!

दिल्ली के चुनाव कब होते हैं- अपने निर्धारित समय फरवरी में या महाराष्ट्र के साथ नवंबर में! इस पर भी ब्रांड केजरीवाल की परीक्षा निर्भर है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बतौर मुख्यमंत्री आतिशी का प्रदर्शन कैसा रहता है। अगर वह दिल्ली के स्कूलों जैसा ही सुधार दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था में ले आती हैं, जिसके लिए उनके पास समय कम अवश्य है। लेकिन इच्छाशक्ति जरूर है। इससे दिल्लीवासी शराब केस की अनदेखा करके आप पर एक बार फिर से भरोसा कर सकते हैं।

लेख- डॉ अनिता राठोर द्वारा

Delhi politics atishi marlena cm of delhi but arvind kejriwal has power to control

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Published On: Sep 19, 2024 | 01:10 PM

Topics:  

  • Arvind Kejriwal
  • Atishi Marlena

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