बरसात व बाढ़ का मौसम (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: चुनाव आयोग ने अपने सुधारों के जरिए बिहार में लोकतंत्र को मजबूती दी लेकिन अब वह मतदाता सूची का जिस तरह से संशोधन करने में लगा है, उसका विपरीत असर हो रहा है।उसे लोगों को चुनाव प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए, न कि अलग करना चाहिए।28 जून से मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण शुरू किया गया है।बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए मुश्किल से 4 माह का समय शेष रह गया है।एक सप्ताह में चुनाव आयोग की वेबसाइट पर सिर्फ 3 प्रतिशत फार्म अपलोड हो पाए हैं।क्या 30 दिनों के भीतर 3 करोड़ मतदाताओं के नाम दर्ज हो पाएंगे? प्रशासनिक दृष्टि से यह असंभव प्रतीत होता है।
संविधान का अनुच्छेद 324 चुनाव आयोग को निर्वाचन कराने का अधिकार देता है जबकि अनुच्छेद 326 निर्देश देता है कि मताधिकार वयस्क भारतीय नागरिकों तक सीमित रहे।जनप्रतिनिधित्व कानून 1950 और मतदाता पंजीयन नियम 1960 मतदाता सूची को अपडेट या अद्यतन करने का निर्देश देते हैं।पिछला विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) 2003 में हुआ था।इसके बाद अनेक राज्यों में सरसरी तौर पर मतदाता सूची के वार्षिक पुनरीक्षण होते रहे।चुनाव आयोग के मुताबिक अपना स्थान छोड़कर अन्यत्र चले जानेवालों, मृतकों तथा विदेशी अवैध घुसपैठियों के नाम हटाने के लिए मतदाता सूची का नवीकरण किया जाता है।इतने पर भी बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण आसान नहीं है।बरसात और बाढ़ में यह काम करना अत्यंत दुष्कर हो जाता है।
इसके अलावा साक्षरता की कमी से भी इसमें बाधा आती है।जिन लोगों के नाम 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं थे उन्हें अपना नाम दर्ज कराने के लिए 11 में से कम से कम 1 दस्तावेज उपलब्ध कराने को कहा गया है।यह जिम्मेदारी मतदाता पर डाली गई है।अधिकांश मतदाताओं के पास ये दस्तावेज नहीं हैं।वे नहीं जानते कि इन्हें कैसे हासिल किया जाए।लोगों को आशंका हो चली है कि पिछले दरवाजे से एनआरसी लाया जा रहा है।गरीबों, प्रवासी मजदूरों, पिछड़ी जातियों के लोगों, मुस्लिमों, बुजुर्गों व महिलाओं को लग रहा है कि उनके नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे।
चुनाव आयोग ने हाल ही में सूचित किया है कि लोग पहले फॉर्म भरकर दें और बाद में दस्तावेज पेश कर सकते हैं।इससे अनिश्चितता बढ़ी है।बिहार में 2007 में जन्में लोग 2025 में 18 वर्ष के हो गए हैं लेकिन वहां उनमें से केवल 25 प्रतिशत के पास ही जन्म प्रमाणपत्र है।इस राज्य में केवल 14.71 प्रतिशत युवाओं ने ही 10वीं कक्षा पास की है।यहां 2023 तक जारी वैध पासपोर्ट केवल 2 प्रतिशत हैं।बिहार पिछड़ा व असमानता वाला राज्य है।यद्यपि 1990 के चुनाव सुधारों से बिहार भी लाभान्वित हुआ लेकिन अभी भी सभी पार्टियों की राय लेकर राज्य में जनजागृति अभियान चलाना आवश्यक है।बेहतर होगा कि इस बार का विधानसभा चुनाव निपट जाने के बाद चुनाव आयोग मतदाता सूची का पुनरीक्षण कराए।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा