अब डॉलर का नियंत्रित अवमूल्यन होना संभव (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: डॉलर विश्व की सर्वाधिक शक्तिशाली मुद्रा है जिसे लेकर कहा जाता है कि अमेरिका इज ग्रेट बट डॉलर इज ऑलमाइटी! इतने पर किसी मुद्रा का बहुत मजबूत रहना वाणिज्य-व्यापार संबंधों को आगे बढ़ाने में रुकावट पैदा करता है। इसी वजह से विभिन्न देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करने के लिए बाध्य होते हैं। भारत ने भी एक समय रुपए का अवमूल्यन या डिवैल्युएशन किया था। अब डॉलर को कमजोर करने का सुझाव दिया जा रहा है। यह मुद्दा अपनी पुष्ट दलीलों के साथ स्टीफन मीरान ने रखा है जिन्होंने ट्रंप की टैरिफ नीति की रचना की है। अमेरिका इसी टैरिफ शस्त्र का इस्तेमाल कर अन्य देशों के बाजार अमेरिकी निर्यात के लिए खोलने में लगा है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने स्टीफन मीरान को अमेरिका के फेडरल रिजर्व के 7 गवर्नरों में से एक बनाया है। मीरान ने डॉलर का नियंत्रित अवमूल्यन करने की सलाह दी है। इससे विश्व की रिजर्व करेन्सी के रूप में डॉलर की उपयोगिता बनी रहेगी। पिछले दिनों ट्रंप ने चीन, भारत, ब्राजील, रूस व द। अफ्रीका जैसे देशों के संगठन ब्रिक्स को चेतावनी दी थी कि वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के निपटान या सुरक्षित संग्रह निधि के रूप में डॉलर के मुकाबले कोई वैकल्पिक मुद्रा बनाने से बाज आएं। अभी डॉलर का अधिक मूल्य या ओवर वैल्युएशन होने से अमेरिका का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र पर इसका विपरीत असर पड़ा है। इसकी वजह से अमेरिका में उद्योग बंद हो रहे हैं तथा अमेरिकी निर्यात कम प्रतिस्पर्धात्मक हो गया है।
बाहरी देशों से कम लागत में बना हुआ सामान सस्ते में आ जाता है। इससे अमेरिका में बेरोजगारी बढ़ी है। यदि डॉलर का नियंत्रित अवमूल्यन किया गया तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार होगा तथा उसके उद्योगों का पुनरूत्थान हो सकेगा। साथ ही वैश्विक व्यापार प्रणाली में भी संतुलन आएगा। इसके पूर्व न्यूयार्क के प्लाजा होटल में 1985 में फ्रांस, जर्मनी, जापान व यूके के साथ डॉलर के अवमूल्यन पर समझौता हुआ था ताकि इन देशों का आपसी व्यापार बढ़े। उस समझौते को 40 वर्ष बीत चुके हैं। अब मीरान का सुझाव है कि नया मार-ए-लागो समझौता ट्रंप के फ्लोरिडा स्थित रिजोर्ट में किया जाए। इसमें चीन और यूरोपीय यूनियन को खास तौर पर शामिल किया जाए।
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इन देशों को कमजोर डॉलर तथा उनके अमेरिकी बॉन्ड निवेश पर कम ब्याज दर स्वीकार करने के लिए राजी किया जाए। ट्रंप के टैरिफ रचनाकार मीरान ने कहा है कि डॉलर के ओवरवैल्यू होने और ऊंची ब्याज दर की वजह से अमेरिकी अर्थव्यवस्था के वित्तीय क्षेत्र को फायदा हो रहा है लेकिन उसके मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों का बुरा हाल हो रहा है। जहां तक एक्सचेंज रेट की बात है, 88 रुपए बराबर 1 डॉलर हो जाने से अमेरिका में पढ़ाई व भ्रमण के उद्देश्य से जानेवाले भारतीयों का खर्च बहुत बढ़ गया है।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा