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नवभारत विशेष: नस्लीय हिंसा से देश के विकास में बाधा, त्रिपुरा के छात्र की उत्तराखंड में हत्या

Tripura Student Murder: नस्लीय हिंसा देश के विकास में बड़ी बाधा बनती जा रही है। उत्तराखंड में त्रिपुरा के छात्र की हत्या ने सामाजिक सद्भाव और कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।

  • By दीपिका पाल
Updated On: Dec 30, 2025 | 11:23 AM

नस्लीय हिंसा से देश के विकास में बाधा (सौ. डिजाइन फोटो)

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नवभारत डिजिटल डेस्क: देहरादून में एमबीए कर रहे अंजेल चकमा 9 दिसंबर 2025 को अपने छोटे भाई के साथ जा रहे थे कि छह व्यक्तियों ने उन पर अभद्र व नस्लीय टिप्पणी की।अंजेल ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि ‘हम चीनी नहीं…भारतीय हैं’, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं सुना और दोनों भाइयों पर चाकुओं व अन्य धारदार हथियारों से हमला बोल दिया।इस वारदात के 14 दिन बाद अंजेल की मौत हो गई, जबकि उसका छोटा भाई अभी गंभीर अवस्था में है, उसका उपचार चल रहा है।

देश के विभिन्न हिस्सों में इस साल केवल दिसंबर में नस्लीय भेदभाव के कारण हुई यह लिंचिंग की तीसरी घटना है।इसके अतिरिक्त क्रिसमस व उसकी पूर्व संध्या पर अलग-अलग शहरों से चर्चों में तोड़फोड़ व ईसाई समुदाय पर हिंसक हमले हुए, जिससे भारत की दुनियाभर में कड़ी आलोचना हुई।ये सब सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं चिंता का विषय बनी हुई है।इससे न सिर्फ देश की छवि खराब हो रही है बल्कि भारत की प्रगति व विकास में बहुत बड़ी बाधा है।इनकी वजह से बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स अधर में लटक जाते हैं, निवेश रुक जाता है।विश्व गुरु जीडीपी बढ़ाने से नहीं, बल्कि सामाजिक सौहार्द का वातावरण उत्पन्न करने से बनाया जाता है ताकि हर कोई व्यापार, शिक्षा आदि के लिए सुरक्षित महसूस करे।

नस्लीय भेदभाव व हिंसा एक ऐसी समस्या है, जिसे अगर अनदेखा किया जाएगा तो बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।क्या युवा व कामकाजी लोग अपने ही देश में बिना डर व सुरक्षा के साथ इधर से उधर नहीं घूम सकते ? दो प्रवासी श्रमिकों की लिंचिंग हुई।19-20 वर्षीय बंगाली की ओडिशा में और 31 वर्षीय छत्तीसगढ़ी की केरल में।इन दोनों को ही ‘बांग्लादेशी’ कहकर पुकारा गया, जो एक ऐसा आरोप है, जिससे देश में हर जगह प्रवासियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाती है।अफ्रीका व उत्तर-पूर्व भारत के छात्र व श्रमिक दशकों से दिल्ली व उत्तरी राज्यों में नस्लवाद का सामना करते आ रहे हैं।

हाल ही में दिल्ली में बीजेपी की एक नेता ने एक अफ्रीकी को धमकाया कि उसने हिंदी क्यों नहीं सीखी, जिसका वीडियो वायरल है।लेकिन अफसोस, किसी सरकार ने नस्लवाद या नफरती अपराध का संज्ञान नहीं लिया।पुलिस आम तौर से नफरत भरे बयानों और ऐसी हिंसा को ‘छिटपुट घटनाएं’ कहकर टाल देती है।विदेशों में भारतीय छात्र स्वयं नस्लवाद का शिकार हो रहे हैं, विशेषकर ट्रंप के अमेरिका में।अभी हाल में कनाडा में एक भारतीय छात्र की गोली मारकर हत्या की गई.

उत्तर-पूर्व के लोगों से क्यों होता है भेदभाव

नीति पॉलिसी रिपोर्ट का अनुमान है कि 2030 तक भारत के केंद्रीय राज्य विश्वविद्यालयों में 1 लाख से अधिक अंतरराष्ट्रीय छात्र होंगे।यह उस समय तक संभव नहीं हो सकता, जब तक विदेशी छात्रों की सुरक्षा नस्ल व त्वचा के रंग के आधार पर 100 प्रतिशत सुनिश्चित नहीं की जाती है।भारत के उत्तर-पूर्व राज्यों को लंबे समय से यह शिकायत रही है कि शेष भारत में उन्हें ‘अलग’ समझा जाता है व उनके साथ भेदभाव होता है।मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एन।बिरेन सिंह ने भी देहरादून में त्रिपुरा के छात्र की हत्या की कड़ी निंदा की है।नस्लीय भेदभाव व हिंसा से न सिर्फ भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छवि खराब हो रही है, विदेशों में भारतीयों पर खतरा बढ़ता जा रहा है, बल्कि हमारी अपनी सरकारों की प्रशासनिक क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं।

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यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम का आरोप है कि इस साल ईसाइयों के विरुद्ध भारत में 600 से अधिक वारदातें हुई हैं, जिस पर अमेरिका, इंग्लैंड आदि के अखबारों में अग्रलेख लिखे गए हैं।बरेली के एक कैफे में एक 20 वर्षीय फर्स्ट ईयर की नर्सिंग छात्रा अपना जन्मदिन मना रही थी कि लगभग 25 गुंडे वहां पहुंचकर मेहमानों की पिटाई करने लगते हैं कि पार्टी में अलग समुदाय के दो छात्रों को क्यों आमंत्रित किया गया? यह गुंडागर्दी है, प्रशासनिक कमजोरी है, जिससे सामाजिक ताना-बाना तार-तार होता है।अब राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील बंगाल, असम व केरल में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं तो ‘घुसपैठिया’ का घिसा-पिटा आरोप असहिष्णुता में वृद्धि कर रहा है.

लेख- शाहिद ए चौधरी के द्वारा

Racial violence hinders the country development a student from tripura was murdered in uttarakhand

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Published On: Dec 30, 2025 | 11:23 AM

Topics:  

  • Domestic Violence
  • Special Coverage
  • Tripura

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