एआई (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: पेरिस में एआई एक्शन समिट में प्रधानमंत्री मोदी की सहअध्यक्षता भारत की एआई से जुड़ी महत्वाकांक्षा में मील का पत्थर है। आनेवाले दशकों में वैश्विक शक्ति संतुलन को आकार देने में एआई की अहम भूमिका रहेगी। वैश्विक एआई संचालन, नवोन्मेष और नीति निर्धारण में भारत अपना मजबूत आधार बनाने का लक्ष्य रखता है।
एआई को लेकर भारत अपने यहां अगला वैश्विक सम्मेलन आयोजित कर सकता है। पेरिस में हुए एआई सम्मेलन में इस बात पर विचार किया गया कि एआई के आशंकित खतरे को नियंत्रण में रखते हुए उसका इस प्रकार इस्तेमाल किया जाए कि सभी उससे लाभान्वित हो सकें। इस समय विश्व में अमेरिका एआई के क्षेत्र में सबसे आगे है लेकिन चीन भी पीछे नहीं है।
कृत्रिम मेधा या एआई में वर्चस्व के लिए होड़ चलती रहेगी लेकिन एआई इसलिए परिपूर्ण नहीं है क्योंकि हर देश अपनी संवेदनशील जानकारी जो कि नवीनतम तकनीक, रक्षा और व्यवसाय से जुड़ी हो सकती है, गोपनीय बनाए रखेगा। चीन की आंतरिक हलचलों, उसकी वैज्ञानिक लैब के घातक प्रयोगों, अमेरिका की औद्योगिक गतिविधियों व अनुसंधान के बारे में पूछने पर एआई कह सकता है कि कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।
इतने पर भी विश्व नेताओं, उद्योग जगत की बड़ी हस्तियों तथा विशेषज्ञों को व्यापक सहमति बनानी होगी कि तेजी से बढ़ती एआई की दिशा क्या होनी चाहिए। 2023 में ब्रिटेन में हुई समिट में 28 राष्ट्रों ने एआई के संभावित खतरों से निपटने की शपथ ली थी तथापि वे इसके लिए बाध्य नहीं थे। गत वर्ष दक्षिण कोरिया ने एआई सेफ्टी इंस्टीट्यूट का नेटवर्क बनाने की शपथ ली।
पेरिस की बैठक में भी सभी देशों के लिए बंधनकारी कोई नियमावली नहीं बन सकी। यह समय ऐसा है जब अमेरिका, चीन, यूरोपीय यूनियन एआई में अपना वर्चस्व या दबदबा कायम रखते हुए स्वहित में नियम-कानून बना रहे हैं और चाहते हैं कि दुनिया उसे माने। जहां तक भारत का सवाल है, यहां का नेतृत्व एआई की वजह से आनेवाले सार्थक बदलाव की बात करता है लेकिन देश में इसे लेकर कोई नियमावली नहीं बनी है। कोई कठोर नीतिगत ढांचा भी नहीं है।
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अमेरिका, चीन व यूरोप की तुलना में एआई में भारत अभी तक कोई सार्थक पहचान नहीं बना पाया। इसके संचालन व नियंत्रण के लिए नीति निर्धारित की जानी चाहिए। इसके बगैर भारत एआई के विकास में योगदान देने की बजाय उसका उपभोक्ता देश बनकर रह जाएगा। एआई के लिए पर्याप्त फंडिंग करने तथा प्रतिस्पर्धात्मक इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है। ऐसा नहीं हुआ तो हमारा देश विदेशी कंपनियों के लिए कम खर्च में चलनेवाला एआई हब बनकर रह जाएगा।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा