
दिल्ली जाने के लिए उत्सुक नहीं CM देवेंद्र फडणवीस
नवभारत डिजिटल डेस्क: महाराष्ट्र का विकास कर उसे 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखने वाले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने साफ शब्दों में कहा कि मैं दिल्ली नहीं जा रहा हूं और 2029 तक महाराष्ट्र में ही रहूंगा। यह उनका पार्टी के अलावा सहयोगी दलों को भी संदेश है। वह बीजेपी नेतृत्व को बताना चाहते हैं कि वह सीएम की कुर्सी पर रहकर भी राज्य में पार्टी संगठन को मजबूती से संभाले हुए हैं। फडणवीस आरएसएस और प्रधानमंत्री मोदी दोनों के करीब हैं। कुछ समय पूर्व तक ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि उन्हें जेपी नड्डा के स्थान पर पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है। कार्यकाल पूरा हो जाने के बाद भी नड्डा अध्यक्ष पद का भार संभाल रहे हैं और साथ ही मोदी सरकार में मंत्री भी हैं।
महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं लेकिन फडणवीस ने कह दिया कि मेरे लिए दिल्ली अभी दूर है। 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद वह पूरी अवधि इस पद पर रहे, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद उनके दिल्ली जाने की अटकलें लगने लगी थीं। तब बीजेपी को 105 और अविभाजित शिवसेना को 56 सीटें मिली थीं। फडणवीस ने अपनी प्रशासकीय व नेतृत्व क्षमता सिद्ध की। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी उन्हें केंद्र में लेना चाहते थे लेकिन फडणवीस ने यह कहकर इनकार किया कि वह महाराष्ट्र में बीजेपी को मजबूत बनाने का इरादा रखते हैं। जब शिवसेना ने बीजेपी से युति तोड़ ली और कांग्रेस के साथ महाविकास आघाडी की सरकार बना ली तो फडणवीस को विपक्ष के नेता की भूमिका निभानी पड़ी। 2022 में जब एकनाथ शिंदे शिवसेना तोड़कर मुख्यमंत्री बने तो देवेंद्र ने उपमुख्यमंत्री पद संभाला।
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एक वर्ष बाद राकांपा भी टूट गई। अजीत पवार के साथ बड़ी तादाद में विधायक महायुति में शामिल हो गए। 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से केवल 17 पर महायुति प्रत्याशी जीते। बीजेपी की सीटें 23 से घटकर 9 पर आ गईं। महाविकास आघाड़ी को 30 सीटें मिलीं। इनके कुछ माह बाद हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपनी ताकत दिखा दी उसे 288 सदस्यीय विधानसभा में 132 सीटें मिलीं। महायुती की कुल 235 सीटें हो गई। अपने तीसरे कार्यकाल में देवेंद्र फडणवीस सरकार को मराठा आंदोलन की चुनौती का सामना करना पड़ा। राज्य में मराठा मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग उठने लगी। उपमुख्यमंत्री शिंदे बीच-बीच में रूठने और अपनी शिकायतें लेकर अमित शाह के पास दिल्ली जाने लगे। जहां तक दूसरे उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की बात है, वह इस सत्य से अवगत हैं कि उनके पास विधायकों का संख्याबल इतना नहीं हैं कि वह मुख्यमंत्री बन सकें। अजीत के महायुति में आने से केंद्रीय जांच एजेंसियां भी उनके प्रति नरम पड़ गई। बीजेपी ने एक तरह से उन्हें क्लीन चिट दे दी।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






