महायुति की महाजीत में देवाभाऊ का पुण्यप्रताप (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: स्थानीय निकाय चुनाव के प्रथम चरण में हुए नगर परिषद व नगर पंचायत चुनाव में बीजेपी को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में प्रचंड सफलता मिली। इसकी प्रमुख वजह मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की स्वच्छ और प्रभावी छवि है वरना सहयोगी नेता तो अपने कारनामों से महायुति को डुबाने पर ही तुले हुए हैं। इस पार्टी के सर्वाधिक नगराध्यक्ष व नगरसेवक निर्वाचित हुए। राज्यस्तर के नेताओं ने भी अपना गढ़ सुरक्षित रखा। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस व राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने अपना प्रभाव क्षेत्र मजबूत रखा। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शिवसेना के असर वाले क्षेत्र जीते। अजीत पवार की राकांपा ने भी पुणे जिले में अपनी मजबूती कायम रखी।
विधानसभा में कांग्रेस गुट के नेता विजय वडेट्टीवार ने चंद्रपुर जिले में पार्टी को भारी सफलता दिलाई। पूर्व मंत्री यशोमति ठाकुर ने अमरावती जिले में बीजेपी के वर्चस्व को चुनौती देने का प्रयास किया। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल बुलढाणा के हैं उन्होंने भी कांग्रेस को विदर्भ में कुछ कामयाबी दिलाई। बीजेपी को महाराष्ट्र में सर्वत्र शानदार सफलता मिली जबकि शिंदे सेना ने कोकण व दक्षिण महाराष्ट्र में सफलता पाई। विदर्भ में फिर एक बार अन्य पार्टियों को नकारते हुए मतदाताओं ने बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों पर विश्वास जताया। मराठवाड़ा के परिणाम मिश्रित रहे। उत्तर महाराष्ट्र (खान्देश) में बीजेपी व अजीत पवार की राकांपा को सफलता मिली।
इस चुनाव में बीजेपी, अजीत (राकांपा) व शिंदे सेना ने एकजुट होकर चुनाव नहीं लड़ा। उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़कर ऐसी रणनीति अपनाई कि महाविकास आघाड़ी को वोट न मिलने पाएं। प्रचार के दौरान तीनों पार्टियों के नेताओं ने एक-दूसरे की आलोचना की। कहीं शिंदे व अजीत की पार्टियों ने बीजेपी को घेरने का प्रयास भी किया। कमजोर हो चुकी उद्धव सेना व शरद पवार की राष्ट्रवादी को मामूली सफलता मिल पाई। स्थानीय निकाय चुनाव में सत्तापक्ष की ओर ही मतदाताओं का झुकाव देखा जाता है। ऐसा ही इस बार भी हुआ। यह चुनाव विभिन्न कारणों से याद रखा जाएगा। अनेक वर्षों बाद चुनाव का मुहूर्त निकला। मतदाता सूची में गड़बड़ी की शिकायत देखी गई। कई जगह चुनाव आगे बढ़ाया गया।
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चुनाव के पहले कितने ही विपक्षी नेता अपनी पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हुए। धनशक्ति का इस्तेमाल होने की शिकायतें मिलीं। शिवसेना (शिंदे) व राकांपा (अजीत) ने अपनी मूल पार्टियों की तुलना में अधिक सफलता पाई। बीजेपी के साथ महायुति करने का उन्हें भरपूर फायदा मिला। कांग्रेस ने दिखा दिया कि वह अब भी अपना प्रभाव रखती है। विदर्भ में यह बात सामने आई। विदर्भ छोड़कर शेष महाराष्ट्र में कांग्रेस नेताओं ने पार्टी के चुनाव चिन्ह पर लड़ना टाला। नगर पालिका व पंचायत चुनाव जनादेश की झलक दिखाता है। अब राज्य की 29 महानगर पालिकाओं का चुनाव फिर जनमत की परीक्षा लेगा। मुख्यमंत्री को चाहिए कि अब सत्तारूढ़ युति के दागियों पर अंकुश लगाएं।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा