मराठी-हिंदी का बोलबाला (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: विधानमंडल के मानसून सत्र में हिंदी अनिवार्यता टकराव का मुद्दा न बने, इसलिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस तथा दोनों उपमुख्यमंत्रियों ने त्रिभाषा नीति के दोनों शासकीय आदेश (जीआर) रद्द करने की घोषणा की। इसके बावजूद राज्य सरकार ने डा। नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में समिति गठित कर दिखा दिया कि वह पूरी तरह पीछे नहीं हटी है। लगता है सरकार का पैंतरा संयुक्त मोर्चे की हवा निकालना था। पहली से 5वीं तक के विद्यार्थियों के लिए हिंदी अनिवार्य करने के सरकारी निर्णय के विरोध में उद्धव ठाकरे व राज ठाकरे एक साथ आए और उन्होंने 5 जुलाई को मुंबई में मोर्चा निकालने की घोषणा की थी।
यह प्रांतीय अस्मिता का मुद्दा बनने जा रहा था। ऐसे में मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंदी अनिवार्य नहीं वैकल्पिक है। सरकार की नीति मराठी केंद्रित और मराठी छात्र केंद्रित रहेगी। हमें इस मामले में कोई राजनीति नहीं करनी है। फडणवीस ने जीआर वापस लेते हुए हिंदी अनिवार्यता का ठीकरा उद्धव ठाकरे पर फोड़ते हुए कहा कि मुख्यमंत्री के तौर पर उद्धव ने कक्षा 1 से 12 तक त्रिभाषा नीति लागू करने के लिए डा। रघुनाथ माशेलकर समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था व नीति कार्यान्वयन पर समिति गठित की थी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में बनी सरकार का 8 महीने में यह तीसरा विधानमंडल सत्र है।
यद्यपि विधानसभा में बीजेपी के 132 विधायकों सहित महायुति सरकार का संख्याबल 237 है लेकिन फिर भी 3 पार्टियों की सरकार चलाने में काफी कसरत करनी पड़ रही है। नाशिक व रायगड़ जिलों में पालकमंत्री को लेकर तीनों दलों में एकमत नहीं हो पा रहा है। विधायकों का आरोप है कि वित्तमंत्री अजीत पवार निधि वितरण में सौतेला बर्ताव कर रहे हैं। इस सत्र में राज्य सरकार 12 विधेयक और 6 अध्यादेश लाने वाली है। इनमें से एक विवादग्रस्त ‘महाराष्ट्र’ विशेष जन सुरक्षा विधेयक है।
इस विधेयक पर राज्य में 12,000 से अधिक आपत्तियां उठाई गई हैं। लोगों का आरोप है कि इसके जरिए सामाजिक आंदोलन करनेवाले कार्यकर्ताओं का मुंह बंद कर दिया जाएगा तथा जनता के अधिकारों पर आंच आएगी। इसी तरह नागपुर-गोवा शक्तिपीठ महामार्ग के लिए जमीन अधिग्रहण से किसानों में काफी नाराजगी है। सरकार इस महामार्ग के निर्माण को लेकर कृतसंकल्प है। महायुति के वचननामे में किसानों की कर्जमाफी का उल्लेख था। मुख्यमंत्री फडणवीस ने कहा था कि उचित समय पर इस बारे में निर्णय लिया जाएगा।
यह समय कब आएगा, पता नहीं। चुनाव के समय सभी पार्टियां आश्वासनों की खैरात बांटती हैं लेकिन जब पूरा करने का समय आता है तो बहाने खोजती हैं। मुख्यमंत्री लाडकी बहीण योजना को एक वर्ष पूरा हो रहा है। इसके लिए कितने विभागों की निधि हस्तांतरित की गई? यह सारे सवाल विपक्ष इस सत्र में उठा सकता है।
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा