कुंभ में मल्लाहों ने की करोड़ों की कमाई (सौ.डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, बढ़ती महंगाई में गृहस्थी की नाव चलाना बहुत कठिन हो गया है. परिस्थितियां चुनौतीपूर्ण हैं. आखिर क्या किया जाए?’ हमने कहा, ‘यदि आप नाव चलाना जानते हैं तो कुंभ मेले में क्यों नहीं गए? प्रयागराज के पिंटू मल्लाह के परिवार ने अपनी नौकाओं में श्रद्धालुओं को संगम तक पहुंचाकर 30 करोड़ रुपए कमा लिए. कुछ चालाक लोग चारसौबीसी का चक्कर चलाकर पैसे कमाते हैं लेकिन पिंटू मल्लाह के परिवार के सदस्यों ने 130 नौकाओं से वाटर ट्रांसपोर्ट सर्विस के जरिए इतनी मोटी कमाई कर ली।
जरा सोचिए कि एक नाव में 20 श्रद्धालु बैठे हैं और प्रत्येक 4,000 से 5,000 रुपए का भुगतान करे तो 3-4 ट्रिप में कितनी रकम हाथ आ जाएगी. हर 12 वर्ष में कुंभ मेला होता है तब तक आप कुछ नाव या मोटरबोट खरीद लीजिए. अच्छी-खासी कमाई कर लेंगे.’ पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, जब हम बच्चे थे तो बारिश में बहते पानी में कागज की नाव चलाया करते थे फिर हमने बड़े होने पर जगजीतसिंह की गजल सुनी- वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी! केरल घूमने गए तो वहां की प्रसिद्ध बोट रेस या नौका दौड़ देखी।
हमें मालूम है कि केवट ने भगवान राम के चरण धोने के बाद ही उन्हें नौका पर बिठाकर गंगा पार कराई थी. रामायण में लिखा है- मांगी नाव ना केवट आना, कहई तुम्हार मरूम मैं जाना. केवट को डर था कि कहीं राम के चरण का स्पर्श होने से उसकी नाव अहिल्या के समान स्त्री न बन जाए. एक भजन भी है- मेरी छोटी से ये नाव, तेरे जादूगर पांव, मोहे डर लागे राम, कैसे बिठाऊं तुम्हें नाव में.’ हमने कहा, ‘ओलंपिक में नौकानयन प्रतियोगिता होती है जिसे रोविंग कांपिटीशन कहा जाता है।
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इसमें बड़ी तेजी से चप्पू या पतवार चलाना पड़ता है. अमेरिका में न्यूयार्क से स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी देखने जाने के लिए बोट में सवार होना पड़ता है. इस 3 मंजिला जहाज को शिप नहीं बल्कि बोट कहा जाता है. उत्तरी ध्रुव में रहनेवाले एस्किमो चमड़े की नाव का इस्तेमाल करते हैं जो कयाक कहलाती है. उर्दू में नाविक या मल्लाह को नाखुदा कहा जाता है. खुदा को माननेवाले भी नाव में बैठने के बाद नाखुदा या मांझी पर भरोसा करने लगते हैं।’
लेख- चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा