
मुंबई महापालिका पर लगी BJP की निगाह (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है जिसकी महापालिका का बजट 75,000 करोड़ रुपए का है। देश के कितने ही राज्यों की तुलना में यह बजट ज्यादा है। इसलिए ट्रिपल इंजिन सरकार का दावा करनेवाली बीजेपी की नजरें मुंबई पर लगी हैं। मुंबई में शिवसेना का मेयर 1997 से 2022 तक रहा। अपने इस गढ़ को कायम रखने के लिए उद्धव ठाकरे ने मनसे के राज ठाकरे को अपने साथ लिया है। मराठी भाषा की अस्मिता के नाम पर ठाकरे बंधु एक साथ आए हैं। उनका असली उद्देश्य है कि सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी हाथ से जाने न पाए।
मुंबई महापालिका (बीएमसी) चुनाव को लेकर महाविकास आघाड़ी की पार्टियों में मतभेद व प्रतिस्पर्धा है। शिवसेना उद्धव व मनसे साथ आने से उसे मराठी भाषी मतों का लाभ मिलेगा किंतु कांग्रेस के स्वतंत्र रूप से लड़ने की वजह से मत विभाजन होगा। बीजेपी के पास मुंबई के गुजराती, राजस्थानी व दक्षिण भारतीय मतदाताओं का समर्थन है। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रभारी रमेश चेन्नीथला ने साफ कह दिया कि कांग्रेस और शिवसेना की मनपा चुनाव में आघाड़ी नहीं हो सकती। उद्धव ठाकरे को लगता है कि राहुल गांधी की मध्यस्थता से कुछ न कुछ हल निकलेगा। उद्धव भूल नहीं सकते कि उन्हें मुख्यमंत्री पद कांग्रेस और राकांपा के समर्थन की वजह से मिला था।
कांग्रेस को इस बात पर आपत्ति है कि उद्धव ने मनसे को साथ क्यों लिया? मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष सांसद वर्षा गायकवाड ने मनसे को धमकी देनेवाली पार्टी कहा है। राज ठाकरे का हिंदी व परप्रांतीय विरोधी रवैया कांग्रेस को मंजूर नहीं है। ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस को मिलनेवाले दलित-मुस्लिम वोट शिवसेना को जाएंगे। महापालिका चुनाव में मुंबई के 227 प्रभागों के लिए मतदान होगा। बहुमत के लिए 114 सीटों की आवश्यकता पड़ेगी। 2017 के चुनाव के बाद यहां पिछले 3 वर्षों से प्रशासक का राज चल रहा है। 2017 के चुनाव में शिवसेना को 84 तथा बीजेपी को 82 सीटें मिली थीं जबकि कांग्रेस को 31, राकांपा को 9 तथा मनसे को 7 सीटें मिली थीं। युति बहुमत से सत्ता में आ गई थी।
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चुनाव के 2 वर्ष बाद मनसे के 6 नगरसेवक शिवसेना में शामिल हो गए थे। इस वजह से राजनीतिक समीकरण बदल गया था। मार्च 2022 में मुंबई महापालिका का कार्यकाल समाप्त हुआ जिसके बाद वहां प्रशासक नियुक्त कर दिया गया। अब हालात ऐसे हैं कि महाविकास आघाड़ी की कलह का चुनाव पर असर पड़ सकता है। कांग्रेस के अलग चुनाव लड़ने से आघाड़ी कमजोर हो जाएगी। एकनाथ शिंदे के कुछ उम्मीदवार चुनाव जीत सकते हैं। जहां तक बीजेपी का सवाल है, वह पूरा जोर लगाएगी। यदि उसने जीत हासिल की तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का राजनीतिक कद और बढ़ जाएगा। मुंबई की आबादी में 50 से 60 लाख मराठी भाषी हैं। शिवसेना-मनसे गठबंधन को विश्वास है कि वह मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे, नाशिक, पुणे, कल्याण व डोंबिवली में जीत हासिल करेगा।
लेख-चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा






