आज के निशानेबाज (सौ. डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘निशानेबाज, अमेठी से लोकसभा चुनाव हारने के बाद स्मृति ईरानी ने वहां झांक कर भी नहीं देखा जबकि उन्होंने वहां घर बनवा लिया था और वहां की वोटर बन गई थीं. याद कीजिए एकता कपूर के 7 वर्षों तक चले टीवी सीरियल को जिसका नाम था क्यूंकि सास भी कभी बहू थी. उसमें स्मृति ईरानी ने आदर्श पात्र तुलसी बहू की भूमिका निभाई थी।
राजनीति में आने पर स्मृति ने अमेठी में गांधी परिवार का वर्चस्व तोड़ा और 2015 में राहुल गांधी को हराकर सांसद ही नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री भी बन गईं.’ हमने कहा, स्मृति ईरानी को लेकर हमारी स्मरणशक्ति अच्छी है. उनकी शैक्षणिक योग्यता को लेकर सवाल उठे थे. वह मानव संसाधन विकास मंत्री बनाई गई थीं जिनके अधीन बड़े-बड़े शिक्षा संस्थान थे. उन्होंने अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के एक सप्ताह के सर्टिफिकेट ऑफ पार्टिसिपेशन को अपनी डिग्री बताया था।’
पड़ोसी ने कहा, ‘मंत्री बनने के लिए शैक्षणिक योग्यता की कोई शर्त नहीं है. मुद्दा यह है कि स्मृति ईरानी ने अमेठी को क्यों भुला दिया? जब वह चुनकर आई थीं तब उन्होंने कहा था कि अमेठी को मैं अपना घर मानती हूं. लोगों ने सांसद नहीं, दीदी को चुना है. अब अमेठी का उनका घर उपेक्षित है. सिर्फ साफ-सफाई करनेवाला वहां झाडू दे जाता है और वहां बने नवग्रह के मंदिर में एक पंडित पूजा के लिए आता है. स्मृति की स्मृति से वह घर ओझल हो चुका है।’
हमने कहा, ‘आपने गीत सुना होगा- दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना, जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना! अब स्मृति ईरानी न सांसद रही, न मंत्री! राहुल को हराने तक पार्टी में उनका वैल्यू था. अब अमेठी में स्मृति ईरानी के गिने-चुने समर्थक यही कहेंगे- तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक है तुमको, मेरी बात और है, मैंने तो मोहब्बत की है।’
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पड़ोसी ने कहा, ‘निशानेबाज, प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा चुनाव लड़ने से इनकार करनेवाली निर्मला सीतारमण को फिर से वित्तमंत्री बनाया लेकिन स्मृति को भुला दिया. राहुल को हराने तक ही स्मृति की उपयोगिता थी. अब स्मृति का अमेठी का मकान बिकने की भी चर्चा है. समय की बलिहारी है. स्मृति सोच रही होंगी- वक्त ने किया क्या हसीं सितम, हम रहे ना हम, तुम रहे ना तुम!’
लेख – चंद्रमोहन द्विवेदी के द्वारा