जो बाइडन (डिजाइन फोटो)
नवभारत डेस्क: दूसरे विश्व युद्ध के दौरान स्वीडन ने अपने नागरिकों को जंग के लिए तैयार करने हेतु एक पंफलेट पांच बार जारी किया था। हाल में स्वीडन ने अब उसी पंफलेट को 32-पृष्ठों की बुकलेट में अपडेट करके उसकी लाखों प्रतियां अपने नागरिकों के बीच बंटवाई हैं, इस बुकलेट में कहा गया है कि आशंकित युद्ध की स्थिति के लिए किस प्रकार से तैयारी करनी है।
इस बीच एक अलग प्रयास में फ़िनलैंड ने भी एक नई वेबसाइट लांच की है, जिसका उद्देश्य अपने नागरिकों को युद्ध के लिए तैयारी करने से संबंधित सूचनाएं उपलब्ध कराना है। फ़िनलैंड रूस के साथ 1,340 किमी का बॉर्डर शेयर करता है। यही नहीं रूस की तरफ़ से ‘भयंकर हवाई हमले’ की आशंका के मद्देनजर अमेरिका ने कीव में अपने दूतावास को बंद कर दिया है और अपने कर्मचारियों से कहा है कि वह शेल्टर में चले जाएं।
अमेरिका के पदचिन्हों पर चलते हुए यूनान, हंगरी, इटली और स्पेन ने भी कीव में अपने अपने दूतावास को बंद कर दिया है। यूक्रेन ने अपने इन सहयोगियों के दूतावास बंद करने के फैसले की आलोचना की है और ‘डर’ को मास्को का ‘मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन’ बताकर डाउनप्ले करने की कोशिश की है।
यह सब क्यों हो रहा है? अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन को अपनी दी हुई लम्बी दूरी की आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (एटीएसीएमएस) प्रयोग करने की अनुमति दे दी है, जिससे रूस के 225 सैन्य ठिकाने मार की रेंज में आ गए हैं। युद्ध के 1000वें दिन यूक्रेन ने पहली बार रूस पर एटीएसीएमएस मिसाइलों से हमला किया।
रूस पहले ही कह चुका था कि अगर उसके खिलाफ अमेरिका के हथियार इस्तेमाल किये गए, तो यह यूक्रेन से नहीं बल्कि नाटो से युद्ध होगा और वह किसी भी नाटो देश पर हमला करने के लिए स्वतंत्र होगा, जिसके लिए उसने अपनी परमाणु नीति भी बदल दी है। अपनी नई नीति में रूस ने इस बात पर बल दिया है कि अगर कोई देश, जिसे परमाणु शक्ति वाले देश का समर्थन प्राप्त होगा, उस पर हमला करता है तो उस स्थिति में वह भी परमाणु हथियारों का प्रयोग कर सकता है।
नाटो में 32 देश शामिल हैं, जिनमें वह सब तो हैं ही जिन्होंने कीव में अपने दूतावास बंद किये हैं, इनके अतिरिक्त फ़िनलैंड भी नाटो का सदस्य है। रूस ने मोबाइल बम शेल्टर्स का सीरियल उत्पादन शुरू कर दिया है, जो अनेक प्रकार के खतरों से सुरक्षित रखने में सक्षम हैं, जिनमें परमाणु विस्फोट से शॉकवेव्स व रेडिएशन से बचाव भी शामिल है।
उत्तरी कोरिया ने अपने सैनिक बलों को क्रेमलिन की मदद करने के लिए भूंजा है, रूस ने सीरिया में अपने सैनिकों की उपस्थिति बढ़ाई है। रूस ने ईरान को अपना एयर डिफेंस सिस्टम दिया है और उसे ऑपरेट करने के लिए अपने सैंकड़ों सैनिक भी ईरान भेजे हैं। इजराइल ने इराक को भी हमले की धमकी दी है।
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ईरान इजराइली हमले का बदला लेने के लिए तेलअवीव पर तीसरा हमला करने की तैयारी कर रहा है। अमेरिका न सिर्फ इजराइल को हथियारों की सप्लाई कर रहा है बल्कि ईरान के विरुद्ध उसके साथ युद्ध करने की योजना में भी है। हालात ऐसे बन रहे हैं कि मध्य पूर्व एशिया और यूक्रेन में रूस और अमेरिका आमने सामने आर-पार की लड़ाई में शामिल हो सकते हैं।
वास्तव में दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी है, बस एक चिंगारी लगने की देर है। जो लोग आग यह सोचकर लगाते हैं कि जब चाहेंगे उस पर काबू पा लेंगे, उन्हें शायद यह मालूम नहीं है कि आग जब भड़कती है तो भड़के ही चली जाती है; कमान से तीर निकलने के बाद कोई नहीं बता सकता कि वह कितनी दूर तक वार करेगा। इसलिए समय रहते यूक्रेन और मध्य पूर्व एशिया में युद्ध विराम के प्रयास न किये गए तो वह विनाशकारी परमाणु युद्ध में भी बदल सकता है।
विश्व के 80 प्रतिशत परमाणु हथियार अमेरिका व रूस के पास हैं। रूस के डिप्लोमेट्स का कहना है कि इस समय जो संकट है वह 1962 के क्यूबा मिसाइल संकट जैसा है जब शीत युद्ध की दोनों महाशक्तियां जानबूझकर परमाणु युद्ध के करीब आ गईं थीं। उनका कहना है कि पश्चिम बहुत बड़ी गलती कर रहा है।
संसार में अन्य जगहों पर जो हिंसा व युद्ध की स्थितियां हैं, उनकी पृष्ठभूमि में भी अमेरिका का हथियार उद्योग ही है। विश्व में अगर शांति होगी तो अमेरिका के हथियार कौन खरीदेगा? बाइडेन ने यूक्रेन को हाल ही में 100 मिलियन डॉलर का कर्ज हथियार खरीदने के लिए दिया है।
ज़ाहिर है कि यह हथियार अमेरिका, फ्रांस आदि से ही खरीदे जायेंगे। इनका कमीशन नेताओं को ही मिलेगा। कोई रक्षा सौदा बिना कमीशन के नहीं होता है। यह सोचने की बात है कि बाइडेन ने अपने कार्यकाल के अंतिम चरण में यूक्रेन को अमेरिकी हथियार इस्तेमाल करने की अनुमति देकर युद्ध को उस समय तेज़ किया है जब अमेरिका के निर्वाचित-राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि 20 जनवरी को वाइट हाउस में पहुंचते ही वह युद्ध बंद करायेंगे, जिसका अर्थ है कि कीव पर अनेक पाबंदियां लग सकती हैं।
लेख- नरेंद्र शर्मा द्वारा