किन चीजों के बिना अधूरी है जन्माष्टमी की पूजा (सौ.सोशल मीडिया)
Janmashtami Puja Samagri: ‘श्रीकृष्ण जन्मोत्सव’ का महापर्व इस साल 16 अगस्त, शनिवार को मनाई जा रही है। जन्माष्टमी महापर्व के आगमन से पहले ही उसकी तैयारियां जोर-शोर से आरंभ हो जाती हैं और पूरे भारत वर्ष में जन्माष्टमी का पर्व पूरी आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
आपको बता दें, हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, जन्माष्टमी की इस पावन घड़ी में भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित की जाने वाली हर वस्तु केवल पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि हमारी श्रद्धा, प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी मानी जाती है।
यह वही पल है जब हमारा मन बाल गोपाल की मुस्कान में खो जाता है और हृदय केवल एक ही प्रार्थना करता है “हे नंदलाला, हमारे जीवन को भी अपनी कृपा और प्रेम से भर दीजिए। इसलिए आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि जन्माष्टमी के अवसर पर आपको अपने लड्डू गोपाल को क्या चीजें अर्पित करनी चाहिए।
ज्योतिषयों के अनुसार, जन्माष्टमी की पूजा में तुलसी दल यानी तुलसी पत्ता का होना बेहद जरुरी होता है। क्योंकि तुलसी दल श्रीकृष्ण को अति प्रिय है। हर भोग, चाहे वह फल हो या मिष्ठान, उसमें तुलसी का पत्ता अवश्य अर्पित करना चाहिए। तुलसी दल अर्पित करने से पूजा पूर्ण मानी जाती है और इससे भगवान का आशीर्वाद शीघ्र प्राप्त होता है।
कहा जाता है कि जन्माष्टमी की पूजा में तुलसी दल के अलावा बांसुरी का होना भी बेहद जरुरी होता है। ये भी श्रीकृष्ण का प्रिय वाद्य है और उनकी दिव्य लीलाओं का प्रतीक भी। पूजा में बांसुरी अर्पित करना भगवान के प्रति प्रेम और उनके स्वरूप से जुड़ाव का भाव दर्शाता है।
जिस प्रकार जन्माष्टमी की पूजा में तुलसी दल और बांसुरी जरूरी है। ठीक वैसे ही बाल कृष्ण की बाल लीलाओं में माखन चोरी का विशेष महत्व है। माखन-मिश्री अर्पित करना उनके प्रति प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। यह भोग उन्हें अत्यंत आनंदित करता है।
ज्योतिष बताते है कि, श्रीकृष्ण को पीला रंग विशेष प्रिय है क्योंकि यह पवित्रता, ज्ञान और आनंद का प्रतीक है। पूजा के समय भगवान को पीले या रेशमी वस्त्र पहनाना अत्यंत शुभ माना जाता है।
जन्माष्टमी की पूजा में भगवान के तिलक के लिए चंदन और रोली का प्रयोग किया जाता है। चंदन शीतलता और पवित्रता का प्रतीक है, जबकि रोली मंगल और सौभाग्य का।
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जन्माष्टमी की पूजा में केला, अंगूर, अनार, सेब, अमरूद और मौसमी फल अर्पित करना भगवान के प्रति कृतज्ञता और भक्ति का भाव है। फल सात्विक आहार का प्रतीक हैं और शुद्ध मन से अर्पित करने पर भगवान इन्हें प्रसाद स्वरूप स्वीकार करते हैं।