
जगन्नाथ मंदिर का रहस्य (सौ.सोशल मीडिया)
ओडिशा के पुरी से भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा जहां पर 7 जुलाई को निकलने वाली है वहीं यह मौका हिंदू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को हर साल में एक बार आता है। इस मौके पर जगन्नाथ मंदिर से तीन रथ भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का निकलता है।
इस अलौकिक नजारे को देखने के लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से पर्यटक मंदिर में पहुंचते है। वैसे तो मंदिर से जुड़े कई रहस्य है लेकिन एक रहस्य यह भी है कि, जब पूजा के दौरान भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को बदला जाता है उस दौरान पंडित अपनी आंखों में पट्टी बांधते है। आखिर क्यों होता है ऐसा है जानते है ये पौराणिक कथा।
इसे लेकर पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म मानव रूप में हुए था। ऐसे में एक मानव का जन्म हुआ है, तो मृत्यु अवश्य होगी। ऐसे में जब भगवान कृष्ण की मृत्यु हुई, तो पांडवों से विधिवत तरीके से उनका दाह संस्कार किया था। लेकिन दाह संस्कार के समय एक चमत्कार हुआ।
श्री कृष्ण का पूरा शरीर तो पंचतत्व में विलीन हो गया लेकिन उनका हृदय फिर भी धड़क रहा था। माना जाता है कि यहीं हृदय आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति में उपस्थिति है। मान्यता यह भी है कि, श्री कृष्ण के हृदय को ब्रह्म पदार्थ कहा गया है जहां पर , हर 12 साल में जगन्नाथ की मूर्ति परिवर्तित की जाती है, तो बहुत सारे नियमों का पालन किया जाता है। ऐसे में वह ब्रह्म पदार्थ नई मूर्ति में लगाया जाता है।
नई मूर्ति की स्थापना करने के दौरान के नियम की बात की जाए तो, उस दौरान आसपास की जगह पर अंधेरा कर दिया जाता है। इसके साथ जो पंडित इस कार्य को करता है उसकी आंखों में भी पट्टी बांध दी जाती है। माना जाता है इस रस्म के दौरान अगर पंडित ने उसे ब्रह्म पदार्थ को देख लिया, तो उसकी मृत्यु अवश्य हो जाती है। इस अनुष्ठान को नव कलेवर नाम से जाना जाता है।
इस अनुष्ठान में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पुरानी मूर्तियों को हटाकर नई मूर्ति रखी जाती है। इस अनुष्ठान का आयोजन सिर्फ अधिक महीने में ही होता है। जिसे लेकर कहा जाता है इसका संयोग 12 या 19 वर्षों में एक बार आता है।






